– सैनिकों से नई तकनीक अपनाने और हर चुनौती के लिए तैयार रहने का आग्रह
New Delhi, 01 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बुधवार को विजयादशमी की पूर्व संध्या पर Gujarat के भुज में सशस्त्र बलों के जवानों के साथ पारंपरिक बड़ाखाना में शामिल हुए. उन्होंने दुनिया के तेजी से बदलते स्वरूप और दिन-प्रतिदिन उभरती जटिल चुनौतियों पर प्रकाश डाला. राजनाथ सिंह ने कहा कि बदलाव के इस युग में कुछ समय पहले आधुनिक यानी जाने वाली तकनीक तेजी से पुरानी होती जा रही है.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हर साल की तरह इस बार जवानों के साथ दशहरा पर्व मनाने के लिए आज शाम को Gujarat के भुज मिलिट्री स्टेशन पर पहुंचे हैं. पूर्व संध्या पर जवानों के साथ सामूहिक भोज (बड़ा खाना) में शामिल होकर उनका मनोबल बढ़ाया. उन्होंने कहा कि बड़ाखाना सामूहिक भोजन के साथ-साथ भावनात्मक बंधन का भी प्रतीक है. यह हमारे सशस्त्र बलों की वह सुन्दर परंपरा है, जहां हैसियत, पद या वर्दी का कोई भेद नहीं रहता. सब एक साथ बैठकर भोजन करते हैं. यह परंपरा हमें सिखाती है कि हम सब एक परिवार हैं.
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एक तरफ पारंपरिक ख़तरे अब भी मौजूद हैं, तो दूसरी ओर आतंकवाद, साइबर हमले, ड्रोन युद्ध और सूचना युद्ध जैसी नई चुनौतियों ने बहुआयामी जोखिम बढ़ा दिए हैं. रक्षा मंत्री ने सैनिकों से नई तकनीक अपनाने, प्रशिक्षण को प्राथमिकता देने और हर चुनौती के लिए तैयार रहने का आग्रह किया. आज की दुनिया में वही सेना अजेय है, जो निरंतर सीखती है और नई चुनौतियों के अनुकूल खुद को ढालती है. उन्होंने कहा कि सशस्त्र बलों की प्रतिबद्धता के साथ भारत जल्द ही दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सेनाओं में से एक का घर होगा.
उन्होंने सैनिकों को आश्वासन दिया कि सरकार उनके कल्याण, सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण, पूर्व सैनिकों के सम्मान और सैनिकों के परिवारों की सुरक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. रक्षा मंत्री ने जोर देकर कहा कि मजबूत, आत्मनिर्भर और विकसित भारत का सपना हमारे सैनिकों के कंधों पर टिका है. उनके समर्पण और बलिदान से ही यह सपना हर दिन साकार हो रहा है. 21वीं सदी को भारत का युग बताते हुए राजनाथ सिंह ने विश्वास व्यक्त किया कि सशस्त्र बलों की प्रतिबद्धता के साथ भारत जल्द ही दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सेनाओं में से एक होगा.
राजनाथ सिंह ने भुज और कच्छ की धरती को श्रद्धांजलि अर्पित की और इसे केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि एक भावना और साहस की गाथा बताया. 1971 के युद्ध और 1999 के कारगिल संघर्ष के दौरान प्रदर्शित वीरता और 2001 के भूकंप के बाद दिखाए गए लचीलेपन को याद करते हुए उन्होंने कहा कि भुज राख से उठ खड़े होने वाले पौराणिक फीनिक्स पक्षी की भावना का उदाहरण है. उन्होंने आगे कहा कि कच्छ की धरती अपने लोगों और सैनिकों की वीरता और अदम्य साहस से ओतप्रोत है.
इस कार्यक्रम में थल सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी, दक्षिणी सेना कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल धीरज सेठ और 12 कोर के कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल आदित्य विक्रम सिंह राठी भी उपस्थित थे.
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(Udaipur Kiran) / सुनीत निगम
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