अलवर , 21 जुलाई (Udaipur Kiran) । सावन का पवित्र महीना शुरू होते ही अलवर जिले के सरिस्का वन क्षेत्र में स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा है। घने जंगलों और पहाड़ों के बीच बसा यह ऐतिहासिक शिवधाम न केवल श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला का भी अद्भुत उदाहरण है। सावन के सोमवार को यहां दर्शन के लिए लंबी कतारें लग रही हैं, और ‘हर-हर महादेव’ के जयकारों से पूरा जंगल गूंज उठा है।
इतिहास से जुड़ा हैं गौरवशाली अध्याय
नीलकंठ महादेव मंदिर का निर्माण लगभग 10वीं शताब्दी में परमार वंश के राजाओं द्वारा कराया गया था। यह मंदिर राजस्थानी स्थापत्य और नागर शैली की अद्भुत मिश्रित कृति है। यह क्षेत्र प्राचीन माथा नीलकंठ नगरी कहलाता था, जहाँ कभी हजारों मंदिर और मूर्तियाँ विद्यमान थीं। आज भी इस क्षेत्र में बिखरे पड़े सैकड़ों खंडहर प्राचीन वैभव की गवाही देते हैं।
मंदिर परिसर में शिवलिंग के अलावा देवी पार्वती, नंदी और अन्य देवी-देवताओं की दुर्लभ मूर्तियाँ भी हैं। कहा जाता है कि यहां भगवान शिव ने कालकूट विष पीने के बाद विश्राम किया था, तभी से इस स्थान को नीलकंठ कहा गया।
धार्मिक आस्था का केंद्र
हर साल सावन में विशेष पूजन, रुद्राभिषेक और जलाभिषेक के लिए हजारों श्रद्धालु यहां जंगल और कठिन रास्तों से होते हुए पहुँचते हैं। कांवड़ लेकर आने वाले भक्तों के लिए यह स्थान अत्यंत पावन माना जाता है। श्रद्धालु कहते हैं कि यहां मांगी गई मन्नतें शिवजी अवश्य पूरी करते हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थान
नीलकंठ महादेव मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि प्रकृति प्रेमियों के लिए भी स्वर्ग समान है। सरिस्का के बाघ अभयारण्य के भीतर बसे इस स्थल तक पहुँचने के लिए घने जंगलों और पहाड़ी रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है, जो स्वयं में एक रोमांचकारी और आध्यात्मिक यात्रा का अनुभव देता है।
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(Udaipur Kiran) / मनीष कुमार
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