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आखिर क्यों की जाती है भोलेनाथ से पहले की नंदी की पूजा, यहां जानिए कहां निभाई जाती है यह अनोखी परंपरा

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सावन के पहले सोमवार को भारत के कई ग्रामीण इलाकों में शिव पूजा से पहले 'नंदी बैल' की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि जब तक नंदी प्रसन्न नहीं होते, भक्तों की प्रार्थना शिव तक नहीं पहुँचती। इस दिन ग्रामीण नंदी बैल को स्नान कराते हैं, हल्दी-चंदन लगाते हैं और मिठाई खिलाते हैं। इसके बाद ही लोग शिव मंदिर में जल चढ़ाने के लिए निकलते हैं। कई जगहों पर नंदी की शोभायात्रा भी निकाली जाती है, जिसे ग्रामीण पूरे उत्साह और भक्ति भाव से सजाते हैं।

यह परंपरा कहाँ निभाई जाती है?

यह मान्यता उत्तर भारत के कुछ गाँवों के साथ-साथ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में विशेष रूप से प्रचलित है। इन ग्रामीण इलाकों में लोग सावन के पहले सोमवार की सुबह नंदी बैल का विशेष सम्मान करते हैं। पुराणों में वर्णित है कि नंदी ही वह माध्यम हैं जिनके माध्यम से भक्तों की प्रार्थना भोलेनाथ तक पहुँचती है। इसलिए, ऐसी मान्यता है कि जब तक नंदी प्रसन्न नहीं होते, आपकी बात शिव तक नहीं पहुँचती। इसी मान्यता के कारण, सावन के पवित्र महीने के पहले सोमवार को ग्रामीण पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ नंदी की पूजा में लीन हो जाते हैं।

कैसे होती है नंदी पूजा?

इस दिन, सुबह-सुबह ग्रामीण नंदी बैलों को विधि-विधान से स्नान कराते हैं। स्नान के बाद, उन्हें हल्दी और चंदन का लेप लगाया जाता है, जो पवित्रता और शुभता का प्रतीक है। इसके बाद नंदी को गुड़, रोटी या अन्य पारंपरिक व्यंजनों से बना मीठा भोजन कराया जाता है। नंदी को भोग लगाने के बाद ही ग्रामीण पास के शिव मंदिर जाते हैं और भगवान शिव को जल चढ़ाकर उनकी पूजा करते हैं।

परंपरा का महत्व

यह परंपरा न केवल भगवान शिव के प्रति ग्रामीणों की अटूट आस्था को दर्शाती है, बल्कि पशुधन के प्रति उनके सम्मान को भी उजागर करती है। नंदी भारतीय संस्कृति में न केवल एक वाहन हैं, बल्कि एक पवित्र प्राणी भी हैं और शिव गणों में उनका प्रमुख स्थान है। उन्हें धर्म और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस विशेष पूजा के माध्यम से, ग्रामीण यह संदेश देते हैं कि प्रकृति और उसके सभी तत्वों का सम्मान भी आध्यात्मिक जीवन का एक अभिन्न अंग है।

बदलते दौर में भी अटूट आस्था

आज के आधुनिक युग में भी ग्रामीण भारत में इस परंपरा का पूरी श्रद्धा से पालन किया जाता है। यह परंपरा न केवल एक धार्मिक मान्यता है, बल्कि ग्रामीण जीवनशैली का भी एक हिस्सा है। पशुधन, विशेषकर बैलों का ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बहुत महत्व माना जाता है। नंदी पूजा एक ओर शिव भक्ति का प्रतीक है, तो दूसरी ओर यह पशु कल्याण और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक भी है।

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