अमेरिका और चीन के बीच चल रही ट्रेड वॉर ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में हलचल मचा दी है। जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस साल अप्रैल में दुनियाभर के कई देशों पर टैरिफ (शुल्क) लगाए, तब से अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव चरम पर पहुंच गया। इसका असर न केवल वैश्विक आपूर्ति शृंखला पर पड़ा, बल्कि कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने चीन से बाहर अपने विकल्प तलाशने शुरू कर दिए। इसी कड़ी में एपल ने भी अपने प्रोडक्शन यूनिट को चीन से हटाकर भारत में स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। दक्षिण भारत में स्थित फॉक्सकॉन का प्लांट, जो कि एप्पल के आईफोन बनाता है, अब इस प्रक्रिया का बड़ा केंद्र बनता जा रहा है।
चीन को खल रहा भारत का उभरनाहाल ही में यह खबर सामने आई कि फॉक्सकॉन ने चीन से लाए गए इंजीनियरों और टेक्नीशियनों को वापस भेज दिया, जिससे उत्पादन की गति धीमी हो सकती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन इस बदलाव को राजनीतिक और आर्थिक चुनौती की तरह देख रहा है और लगातार भारत पर दबाव डालने की कोशिश कर रहा है।
भारत को एथेन गैस सप्लाई से भी फायदाइसी दौरान एक और बड़ी खबर आई है, जो भारत की ऊर्जा और केमिकल इंडस्ट्री से जुड़ी है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका से निकलने वाला एथेन गैस से भरा जहाज एसटीएल क्विजियांग (STL Quijang) अब चीन के बजाय भारत की ओर रुख कर रहा है। यह जहाज भारत के गुजरात स्थित दाहेज पोर्ट पर पहुंचेगा, जहां रिलायंस इंडस्ट्रीज़ ने पहले से एक टर्मिनल और उत्पादन यूनिट स्थापित कर रखी है। यह गैस भारत में एथिलीन केमिकल बनाने में उपयोग की जाती है, जिसका उपयोग प्लास्टिक और अन्य औद्योगिक उत्पादों के निर्माण में होता है।
मुकेश अंबानी को मिलेगा बड़ा फायदाभारत के प्रमुख उद्योगपति मुकेश अंबानी पहले ही रिटेल और डिजिटल कारोबार में लगभग 57 अरब डॉलर का बड़ा साम्राज्य खड़ा कर चुके हैं, लेकिन उनका पारंपरिक और स्थायी लाभदायक व्यवसाय अब भी ऑयल टू केमिकल्स है, जिससे हर साल करीब 74 अरब डॉलर की आमदनी होती है।
एथेन बन सकता है भारत की नई ऊर्जा रीढ़पहले नाफ्था से एथिलीन बनता था, जो क्रूड ऑयल से रिफाइन करके प्राप्त होता है। इसमें बड़ी समस्या यह थी कि सिर्फ 30% तक ही गैस का उपयोग हो पाता था। इसके उलट एथेन गैस से 80% तक केमिकल उत्पादकता मिलती है, जिससे यह ज्यादा प्रभावशाली और किफायती साबित होती है।
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