राजस्थान के राजसमंद जिले में देवगुढ़ा स्थित श्री कालाजी-गोराजी मंदिर परिसर में निरजला एकादशी के पावन अवसर पर एक विशाल मेले का आयोजन होने जा रहा है। 18 जून मंगलवार को पड़ने वाली निरजला एकादशी को देखते हुए, मंदिर समिति और स्थानीय प्रशासन ने सभी तैयारियां लगभग पूरी कर ली हैं। इस दिन भारी संख्या में श्रद्धालुओं के मंदिर पहुंचने की उम्मीद है, जिसके लिए विशेष इंतजाम किए जा रहे हैं।
धार्मिक महत्व और मान्यताएं:
श्री कालाजी-गोराजी मंदिर लोक देवताओं को समर्पित एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, जहाँ हर साल निरजला एकादशी के दिन बड़ा मेला लगता है। यह दिन हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन भक्त बिना जल ग्रहण किए व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, ऐसी मान्यता है कि इससे सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भीषण गर्मी के बावजूद, श्रद्धालु पूरे श्रद्धा भाव से इस व्रत का पालन करते हैं।
तैयारियों का जायजा:
मेले में श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा को देखते हुए व्यापक प्रबंध किए जा रहे हैं:
सुरक्षा व्यवस्था: मंदिर परिसर और उसके आसपास कानून व्यवस्था बनाए रखने तथा भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त पुलिस बल तैनात किया जाएगा। आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए भी टीमें सक्रिय रहेंगी।
पानी और स्वच्छता: गर्मी के मौसम को ध्यान में रखते हुए श्रद्धालुओं के लिए पर्याप्त पीने के पानी की व्यवस्था की जा रही है। जगह-जगह वाटर कूलर और टैंकर लगाए जाएंगे। साथ ही, परिसर की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
परिवहन सुविधा: मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यातायात को सुचारू बनाने के प्रबंध किए जा रहे हैं, ताकि पार्किंग और जाम की समस्या से बचा जा सके।
स्वयंसेवकों की तैनाती: मंदिर समिति के स्वयंसेवक भक्तों की सहायता के लिए पूरे दिन मौजूद रहेंगे और व्यवस्था बनाए रखने में मदद करेंगे।
सांस्कृतिक कार्यक्रम (संभावित): कुछ स्थानों पर लोक गायन या धार्मिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जा सकता है, जो मेले की शोभा बढ़ाएंगे।
भक्तों से अपील:
मंदिर समिति और प्रशासन ने भक्तों से अपील की है कि वे शांति और व्यवस्था बनाए रखने में सहयोग करें, ट्रैफिक नियमों का पालन करें और गर्मी को देखते हुए पर्याप्त सावधानियां बरतें। छोटे बच्चों और बुजुर्गों का विशेष ध्यान रखने की सलाह दी गई है।
राजसमंद का यह मेला केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण संस्कृति और सामुदायिक सौहार्द का भी एक अनूठा संगम है। यह उत्सव एक बार फिर से इस क्षेत्र की लोक विरासत और धार्मिक भावनाओं को एक मंच पर लाएगा।
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