काठमांडू: नेपाल में मार्च में होने वाले चुनावों से पहले सीपीएन-माओवादी सेंटर सहित नौ दलों का विलय होकर एक नई नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी बनने की तैयारी में हैं। यह चुनाव हाल में ही नेपाल में हुई जेन-जी क्रांति के बाद होने वाले हैं। इस विलय को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड के नेतृत्व वाली सीपीएन-माओवादी सेंटर ने मंगलवार को महाधिवेशन आयोजन समिति की आखिरी बैठक आयोजित की गई थी। इस बैठक को संबोधित करते हुए पार्टी के उपाध्यक्ष नारायणकाजी श्रेष्ठ ने दावा किया कि जेन-जी का विरोध प्रदर्शन पार्टी को एक छत्र के नीचे आने की मजबूरी बन गया है।
न्यूज 18 ने शीर्ष खुफिया सूत्रों के हवाले से बताया है, "नेपाल के माओवादियों द्वारा देश का नेतृत्व करने का मतलब होगा कि चीनी एजेंडे को आगे बढ़ाया जाएगा। नेपाल में पश्चिम बनाम चीन की लड़ाई होगी। इसके अलावा, बीजिंग काठमांडू में बड़ी राजनीतिक इंजीनियरिंग कर रहा है।" अमेरिका, भारत और यूरोपीय देश लोकतांत्रिक स्थिरता और पारदर्शिता के लिए प्रयास कर रहे हैं, ऐसे में नेपाल में पश्चिम बनाम चीन की लड़ाई होगी।
जेन-जी आंदोलन के बाद नेपाल में क्या हो रहा है?
जेन-जेड के सितंबर विद्रोह के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को पद से हटा दिया गया था। दो दिनों तक चली हिंसा में कम से कम 72 लोग मारे गए थे। इनमें से अधिकतर मौतें पुलिस फायरिंग में हुई थी। इसके बाद लंबे गतिरोध के बाद पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को नेपाल का अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया। पद ग्रहण करते ही उन्होंनें संसद भंग करने की सिफारिश की और 5 मार्च, 2026 को चुनाव कराने का ऐलान किया।
नेपाल में 9 पार्टियों के विलय में कौन-कौन शामिल
इस विलय में माओवादी केंद्र, सीपीएन (एकीकृत समाजवादी), नेपाल समाजवादी पार्टी, जनता समाजवादी पार्टी नेपाल, सीपीएन (माओवादी समाजवादी), सीपीएन (साम्यवादी) और अन्य वामपंथी धड़े शामिल हैं। सीपीएन- माओवादी सेंटर के नेता नारायण काजी श्रेष्ठ ने जोर देकर कहा है कि कम्युनिस्ट आंदोलन के भीतर पुनर्गठन और ध्रुवीकरण आवश्यक है। नेताओं के अनुसार, नई पार्टी का मार्गदर्शक सिद्धांत मार्क्सवाद-लेनिनवाद होगा, जबकि राजनीतिक कार्यक्रम नेपाली विशेषताओं वाले वैज्ञानिक समाजवाद पर केंद्रित होगा। सभी सहभागी केंद्रीय समितियों की संयुक्त बैठक पार्टी घोषणापत्र, अंतरिम क़ानून और केंद्रीय नेतृत्व संरचना को अंतिम रूप देगी। नई पार्टी ने अपने चुनाव चिन्ह के रूप में पंच कोनों वाले तारे को अपनाने पर सहमति व्यक्त की है।
नेपाल में चीन बढ़ा रहा प्रभाव
नेपाल लंबे समय से अमेरिका और चीन के बीच खींचतान का मैदान बना हुआ है। खुफिया रिपोर्टों के अनुसार, चीनी राजनयिक नेपाल के माओवादी नेताओं को वित्तीय और राजनीतिक वादे कर अपनी तरफ आकर्षित कर रहे हैं। माना जा रहा है कि नेपाल में 9 कम्युनिस्ट पार्टियों के एकीकरण के पीछे चीन का हाथ है। चीन इससे पहले भी 2018 में पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और पुष्प कमल दहल प्रचंड को एक साथ ला चुका है। इसका उद्देश्य नेपाल की राजनीतिक व्यवस्था में चीन समर्थक और पश्चिम विरोधी गठबंधन को बहाल करना था, हालांकि, यह गठबंधन ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सका
भारत की बढ़ेगी टेंशन
नेपाल में इस नए राजनीतिक उठापठक का सीधा असर भारत पर पड़ सकता है। माओवादी पार्टियों को खुले तौर पर चीन का समर्थक माना जाता है। ऐसे में ये पार्टियां सत्ता में आएं या न आएं, नेपाल में भारत के लिए परेशानी जरूर खड़ी कर सकती हैं। पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का चीन प्रेम किसी से छिपा हुआ नहीं है। ऐसे में अगर पुष्प कमल दहल प्रचंड भी उनके पाले में चले जाते हैं तो भारत के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। नेपाल में चीन ने पहले से ही काफी पैठ बना ली है, जिससे भारत के लिए कई मुश्किलें खड़ी हुई हैं।
न्यूज 18 ने शीर्ष खुफिया सूत्रों के हवाले से बताया है, "नेपाल के माओवादियों द्वारा देश का नेतृत्व करने का मतलब होगा कि चीनी एजेंडे को आगे बढ़ाया जाएगा। नेपाल में पश्चिम बनाम चीन की लड़ाई होगी। इसके अलावा, बीजिंग काठमांडू में बड़ी राजनीतिक इंजीनियरिंग कर रहा है।" अमेरिका, भारत और यूरोपीय देश लोकतांत्रिक स्थिरता और पारदर्शिता के लिए प्रयास कर रहे हैं, ऐसे में नेपाल में पश्चिम बनाम चीन की लड़ाई होगी।
जेन-जी आंदोलन के बाद नेपाल में क्या हो रहा है?
जेन-जेड के सितंबर विद्रोह के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को पद से हटा दिया गया था। दो दिनों तक चली हिंसा में कम से कम 72 लोग मारे गए थे। इनमें से अधिकतर मौतें पुलिस फायरिंग में हुई थी। इसके बाद लंबे गतिरोध के बाद पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को नेपाल का अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया। पद ग्रहण करते ही उन्होंनें संसद भंग करने की सिफारिश की और 5 मार्च, 2026 को चुनाव कराने का ऐलान किया।
नेपाल में 9 पार्टियों के विलय में कौन-कौन शामिल
इस विलय में माओवादी केंद्र, सीपीएन (एकीकृत समाजवादी), नेपाल समाजवादी पार्टी, जनता समाजवादी पार्टी नेपाल, सीपीएन (माओवादी समाजवादी), सीपीएन (साम्यवादी) और अन्य वामपंथी धड़े शामिल हैं। सीपीएन- माओवादी सेंटर के नेता नारायण काजी श्रेष्ठ ने जोर देकर कहा है कि कम्युनिस्ट आंदोलन के भीतर पुनर्गठन और ध्रुवीकरण आवश्यक है। नेताओं के अनुसार, नई पार्टी का मार्गदर्शक सिद्धांत मार्क्सवाद-लेनिनवाद होगा, जबकि राजनीतिक कार्यक्रम नेपाली विशेषताओं वाले वैज्ञानिक समाजवाद पर केंद्रित होगा। सभी सहभागी केंद्रीय समितियों की संयुक्त बैठक पार्टी घोषणापत्र, अंतरिम क़ानून और केंद्रीय नेतृत्व संरचना को अंतिम रूप देगी। नई पार्टी ने अपने चुनाव चिन्ह के रूप में पंच कोनों वाले तारे को अपनाने पर सहमति व्यक्त की है।
नेपाल में चीन बढ़ा रहा प्रभाव
नेपाल लंबे समय से अमेरिका और चीन के बीच खींचतान का मैदान बना हुआ है। खुफिया रिपोर्टों के अनुसार, चीनी राजनयिक नेपाल के माओवादी नेताओं को वित्तीय और राजनीतिक वादे कर अपनी तरफ आकर्षित कर रहे हैं। माना जा रहा है कि नेपाल में 9 कम्युनिस्ट पार्टियों के एकीकरण के पीछे चीन का हाथ है। चीन इससे पहले भी 2018 में पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और पुष्प कमल दहल प्रचंड को एक साथ ला चुका है। इसका उद्देश्य नेपाल की राजनीतिक व्यवस्था में चीन समर्थक और पश्चिम विरोधी गठबंधन को बहाल करना था, हालांकि, यह गठबंधन ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सका
भारत की बढ़ेगी टेंशन
नेपाल में इस नए राजनीतिक उठापठक का सीधा असर भारत पर पड़ सकता है। माओवादी पार्टियों को खुले तौर पर चीन का समर्थक माना जाता है। ऐसे में ये पार्टियां सत्ता में आएं या न आएं, नेपाल में भारत के लिए परेशानी जरूर खड़ी कर सकती हैं। पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का चीन प्रेम किसी से छिपा हुआ नहीं है। ऐसे में अगर पुष्प कमल दहल प्रचंड भी उनके पाले में चले जाते हैं तो भारत के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। नेपाल में चीन ने पहले से ही काफी पैठ बना ली है, जिससे भारत के लिए कई मुश्किलें खड़ी हुई हैं।
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