उमरियाः कभी सिर्फ जंगलों और खदानों के नाम से पहचान रखने वाले मंगठार की किस्मत उस दिन बदल गई थी, जब 20 जुलाई 1981 को तत्कालिक पीएम इंदिरा गांधी का दौरा हुआ। उन्होंने यहां पर संजय गांधी ताप विद्युत गृह की आधारशिला रखी थी। रविवार को 45 साल बाद यह परियोजना न सिर्फ बिजली बना रही है। साथ ही क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक विकास की एक मिसाल भी बन चुकी है।
26 मार्च 1993 में पहली यूनिट की 210 मेगावाट बिजली उत्पादन बढ़ते-बढ़ते 1340 मेगावाट तक पहुंच गया है। इसके साथ ही एक 20 मेगावाट क्षमता का हायडल यानी जल विद्युत संयंत्र भी कार्यरत है। इस प्लांट से निकलने वाली बिजली ने गांवों में रोशनी और परिवारों में उम्मीदें जगाई हैं। प्लांट ने आदिवासी अंचलों तक सतत बिजली पहुंचाकर प्रगति की नई राहें खोली।
45 सालों में ऐसे हुआ विकास
संजय गांधी ताप विद्युत गृह में बिजली निर्माण की पहली यूनिट 26 मार्च 1993 को 210 मेगावाट से हुआ। इसके बाद 27 मार्च 1994 से 210 मेगावाट, तीसरी यूनिट 1999 में 210 मेगावाट, तो चौथी यूनिट 23 नवंबर 1999 210 मेगावाट बिजली उत्पादन हुआ। वहीं, पांचवी यूनिट 500 मेगावाट को लेकर 18 जून 2007 को शुरू हुआ।
रोजगार के साथ इकोनॉमी बढ़ाने में मदद
यह विद्युत प्लांट सिर्फ बिजली नहीं बनाता है, बल्कि आसपास के हजारों लोगों के लिए रोजगार और व्यापार का जरिया बना हुआ है। पावर प्लांट से निकलने वाली फ्लाई ऐश सीमेंट कंपनियों और ईंट व्यवसायियों के लिए वरदान है। ट्रांसपोर्ट कारोबारियों को कोयला ढुलाई और फ्लाई ऐश की सप्लाई से इनकम हो रही है। साथ ही ट्रांसपोर्टेशन होने से किराना, मकान, शिक्षा और मेडिकल जैसी सुविधाएं भी बढ़ी है।
चुनौतियों से उभरा संयंत्र
2008 में कार्बन उत्सर्जन और 2013 में बारिश से कोयला आपूर्ति बाधित हुई थी। साथ ही पर्यावरणीय और आपदा संबंधी संकट भी सामने आए। लेकिन संयंत्र रुका नहीं। 2010 में 1390 करोड़ रुपए का निवेश कर इसे आधुनिकीकरण और दक्षता के नए स्तर तक पहुंचाया गया।
स्थापना दिवस का संकल्प
स्थानीय समाजसेवी प्रेम सोनी ने स्थापना दिवस पर उन कर्मवीरों को सम्मानित करने की बात कही, जिनकी मेहनत ने प्लांट को इस मुकाम तक पहुंचाया। आज यह संयंत्र प्रदेश का सबसे सस्ती बिजली उत्पादन करने वाला स्टेशन है और भविष्य में इसके विस्तार की संभावना भी बनी हुई है। साथ ही यह संयंत्र बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर से पूरी तरह सुसज्जित है, असीम जल की उपलब्धता (जोहिला बांध), पर्याप्त भूमि, आवासीय भवन और निर्माण के लिए उपयुक्त स्थल पहले से मौजूद हैं।
26 मार्च 1993 में पहली यूनिट की 210 मेगावाट बिजली उत्पादन बढ़ते-बढ़ते 1340 मेगावाट तक पहुंच गया है। इसके साथ ही एक 20 मेगावाट क्षमता का हायडल यानी जल विद्युत संयंत्र भी कार्यरत है। इस प्लांट से निकलने वाली बिजली ने गांवों में रोशनी और परिवारों में उम्मीदें जगाई हैं। प्लांट ने आदिवासी अंचलों तक सतत बिजली पहुंचाकर प्रगति की नई राहें खोली।
45 सालों में ऐसे हुआ विकास
संजय गांधी ताप विद्युत गृह में बिजली निर्माण की पहली यूनिट 26 मार्च 1993 को 210 मेगावाट से हुआ। इसके बाद 27 मार्च 1994 से 210 मेगावाट, तीसरी यूनिट 1999 में 210 मेगावाट, तो चौथी यूनिट 23 नवंबर 1999 210 मेगावाट बिजली उत्पादन हुआ। वहीं, पांचवी यूनिट 500 मेगावाट को लेकर 18 जून 2007 को शुरू हुआ।
रोजगार के साथ इकोनॉमी बढ़ाने में मदद
यह विद्युत प्लांट सिर्फ बिजली नहीं बनाता है, बल्कि आसपास के हजारों लोगों के लिए रोजगार और व्यापार का जरिया बना हुआ है। पावर प्लांट से निकलने वाली फ्लाई ऐश सीमेंट कंपनियों और ईंट व्यवसायियों के लिए वरदान है। ट्रांसपोर्ट कारोबारियों को कोयला ढुलाई और फ्लाई ऐश की सप्लाई से इनकम हो रही है। साथ ही ट्रांसपोर्टेशन होने से किराना, मकान, शिक्षा और मेडिकल जैसी सुविधाएं भी बढ़ी है।
चुनौतियों से उभरा संयंत्र
2008 में कार्बन उत्सर्जन और 2013 में बारिश से कोयला आपूर्ति बाधित हुई थी। साथ ही पर्यावरणीय और आपदा संबंधी संकट भी सामने आए। लेकिन संयंत्र रुका नहीं। 2010 में 1390 करोड़ रुपए का निवेश कर इसे आधुनिकीकरण और दक्षता के नए स्तर तक पहुंचाया गया।
स्थापना दिवस का संकल्प
स्थानीय समाजसेवी प्रेम सोनी ने स्थापना दिवस पर उन कर्मवीरों को सम्मानित करने की बात कही, जिनकी मेहनत ने प्लांट को इस मुकाम तक पहुंचाया। आज यह संयंत्र प्रदेश का सबसे सस्ती बिजली उत्पादन करने वाला स्टेशन है और भविष्य में इसके विस्तार की संभावना भी बनी हुई है। साथ ही यह संयंत्र बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर से पूरी तरह सुसज्जित है, असीम जल की उपलब्धता (जोहिला बांध), पर्याप्त भूमि, आवासीय भवन और निर्माण के लिए उपयुक्त स्थल पहले से मौजूद हैं।
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