नई दिल्ली: किसी भी कारोबार को करने के लिए मन में इच्छा और जुनून का होना जरूरी है। ऐसा ही कुछ किया रीवा सूद ने। साल 2012 में रीवा सूद की जिंदगी में एक बड़ा बदलाव आया। उनके पति को कैंसर हो गया था। इसके बाद रीवा हिमाचल प्रदेश में अपने घर लौट आईं। उन्होंने बंजर जमीन को 70 एकड़ के हरे-भरे खेत में बदल दिया। वह केमिकल फ्री खेती करती हैं। अपने इस कारोबार में उन्होंने 300 ग्रामीण महिलाओं को भी सशक्त बनाया है। रीवा अपने इस कारोबार से सालाना एक करोड़ रुपये की कमाई कर रही हैं।
साल 2012 में रीवा और उनके पति राजीव सूद के लिए जिंदगी अचानक बदल गई। राजीव को आंत का कैंसर हो गया था। यह खबर उनके लिए एक बड़ा झटका थी। रीवा कहती हैं, 'इस खबर ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया। हमने परिवार के साथ ज्यादा समय बिताना शुरू कर दिया। मैं यह भी समझने की कोशिश कर रही थी कि राजीव की बीमारी की जड़ क्या है।'
ऐसे मिला खेती का आइडियारीवा आगे बताती हैं, 'एक बार मैंने उनसे पूछा कि आप तो डॉक्टर हैं। फिर आपको यह कैसे हो गया? हमने क्या गलत किया होगा? उनका जवाब सरल था और इसने मुझे झकझोर दिया। मेरे पति ने बताया कि उन्हें खाने के कारण कैंसर हुआ है।' इस बात से पता चला कि रासायनिक खाद और कीटनाशकों के उपयोग से उपजाई गई सब्जियों और फलों ने उनकी सेहत पर बुरा असर डाला होगा। यहीं से रीवा के मन में केमिकल फ्री खेती का विचार आया।
बंजर जमीन को खेती के लायक बनायारीवा का जन्म हिमाचल प्रदेश में हुआ था। लेकिन उनकी पढ़ाई-लिखाई और नौकरी दिल्ली में हुई। कैंसर की खबर के बाद उन्होंने अपने गांव लौटने और स्वस्थ जीवन जीने का फैसला किया। उनका गांव हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में है।
उन्होंने सबसे पहले अपनी बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने का फैसला किया। उन्होंने ड्रैगन फ्रूट की खेती करने का फैसला किया। रीवा बताती हैं, 'यह एक कैक्टस की किस्म है और यह पथरीली जमीन में भी आसानी से उग जाती है। इसे कम पानी की जरूरत होती है। यह मेरे गांव की सूखी और पहाड़ी जमीन के लिए बिल्कुल सही थी। इसके अलावा, इसके कांटेदार होने की वजह से यह बंदरों और नीलगाय जैसे जानवरों से भी सुरक्षित थी।'
ऐसे की शुरुआतसाल 2017 में रीवा ने एक बड़ा कदम उठाया। उन्होंने अपने गांव में पांच एकड़ बंजर जमीन पर 2000 ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए। उन्होंने वर्मीकम्पोस्टिंग जैसी स्थानीय तकनीकों का इस्तेमाल किया। उन्होंने प्राकृतिक उर्वरकों का भी इस्तेमाल किया, जैसे कि छाछ और जीवामृत। जीवामृत गाय के गोबर और मूत्र से बना एक तरल उर्वरक होता है। इन तरीकों से उन्होंने न केवल जमीन को उपजाऊ बनाया बल्कि उसे हरा-भरा भी कर दिया। कुछ सालों में रीवा ने 70 एकड़ जमीन पर खेती करना शुरू कर दिया। अब उनके खेत में 30,000 पेड़ हैं।
रीवा सिर्फ खेती तक ही सीमित नहीं रहीं। उन्होंने ड्रैगन फ्रूट को प्रोसेस करके बेचने का फैसला किया। इससे उन्हें ज्यादा मुनाफा हुआ। वह स्थानीय बाजार में 200 रुपये प्रति किलो के हिसाब से ड्रैगन फ्रूट बेचती थीं। इसके बाद उन्होंने प्राकृतिक जूस जैसे प्रोडक्ट भी बेचना शुरू कर दिया।
उन्होंने न केवल अपने खेत के उत्पादों का इस्तेमाल किया, बल्कि हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड और दिल्ली जैसे राज्यों की 300 ग्रामीण महिलाओं से भी फल खरीदे। उन्होंने Him2Hum नाम से एक Farmers Producer Organisation (FPO) बनाई। यह किसानों का एक ग्रुप है। इसके जरिए ये महिलाएं रीवा के साथ मिलकर ड्रैगन फ्रूट और अश्वगंधा और मोरिंगा जैसी जड़ी-बूटियों की खेती, प्रोसेसिंग और बिक्री करती हैं। रीवा का कारोबार सालाना 1 करोड़ रुपये का है।
साल 2012 में रीवा और उनके पति राजीव सूद के लिए जिंदगी अचानक बदल गई। राजीव को आंत का कैंसर हो गया था। यह खबर उनके लिए एक बड़ा झटका थी। रीवा कहती हैं, 'इस खबर ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया। हमने परिवार के साथ ज्यादा समय बिताना शुरू कर दिया। मैं यह भी समझने की कोशिश कर रही थी कि राजीव की बीमारी की जड़ क्या है।'
ऐसे मिला खेती का आइडियारीवा आगे बताती हैं, 'एक बार मैंने उनसे पूछा कि आप तो डॉक्टर हैं। फिर आपको यह कैसे हो गया? हमने क्या गलत किया होगा? उनका जवाब सरल था और इसने मुझे झकझोर दिया। मेरे पति ने बताया कि उन्हें खाने के कारण कैंसर हुआ है।' इस बात से पता चला कि रासायनिक खाद और कीटनाशकों के उपयोग से उपजाई गई सब्जियों और फलों ने उनकी सेहत पर बुरा असर डाला होगा। यहीं से रीवा के मन में केमिकल फ्री खेती का विचार आया।
बंजर जमीन को खेती के लायक बनायारीवा का जन्म हिमाचल प्रदेश में हुआ था। लेकिन उनकी पढ़ाई-लिखाई और नौकरी दिल्ली में हुई। कैंसर की खबर के बाद उन्होंने अपने गांव लौटने और स्वस्थ जीवन जीने का फैसला किया। उनका गांव हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में है।
उन्होंने सबसे पहले अपनी बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने का फैसला किया। उन्होंने ड्रैगन फ्रूट की खेती करने का फैसला किया। रीवा बताती हैं, 'यह एक कैक्टस की किस्म है और यह पथरीली जमीन में भी आसानी से उग जाती है। इसे कम पानी की जरूरत होती है। यह मेरे गांव की सूखी और पहाड़ी जमीन के लिए बिल्कुल सही थी। इसके अलावा, इसके कांटेदार होने की वजह से यह बंदरों और नीलगाय जैसे जानवरों से भी सुरक्षित थी।'
ऐसे की शुरुआतसाल 2017 में रीवा ने एक बड़ा कदम उठाया। उन्होंने अपने गांव में पांच एकड़ बंजर जमीन पर 2000 ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए। उन्होंने वर्मीकम्पोस्टिंग जैसी स्थानीय तकनीकों का इस्तेमाल किया। उन्होंने प्राकृतिक उर्वरकों का भी इस्तेमाल किया, जैसे कि छाछ और जीवामृत। जीवामृत गाय के गोबर और मूत्र से बना एक तरल उर्वरक होता है। इन तरीकों से उन्होंने न केवल जमीन को उपजाऊ बनाया बल्कि उसे हरा-भरा भी कर दिया। कुछ सालों में रीवा ने 70 एकड़ जमीन पर खेती करना शुरू कर दिया। अब उनके खेत में 30,000 पेड़ हैं।
रीवा सिर्फ खेती तक ही सीमित नहीं रहीं। उन्होंने ड्रैगन फ्रूट को प्रोसेस करके बेचने का फैसला किया। इससे उन्हें ज्यादा मुनाफा हुआ। वह स्थानीय बाजार में 200 रुपये प्रति किलो के हिसाब से ड्रैगन फ्रूट बेचती थीं। इसके बाद उन्होंने प्राकृतिक जूस जैसे प्रोडक्ट भी बेचना शुरू कर दिया।
उन्होंने न केवल अपने खेत के उत्पादों का इस्तेमाल किया, बल्कि हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड और दिल्ली जैसे राज्यों की 300 ग्रामीण महिलाओं से भी फल खरीदे। उन्होंने Him2Hum नाम से एक Farmers Producer Organisation (FPO) बनाई। यह किसानों का एक ग्रुप है। इसके जरिए ये महिलाएं रीवा के साथ मिलकर ड्रैगन फ्रूट और अश्वगंधा और मोरिंगा जैसी जड़ी-बूटियों की खेती, प्रोसेसिंग और बिक्री करती हैं। रीवा का कारोबार सालाना 1 करोड़ रुपये का है।
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