श्रीनगर: पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल समझौते को सस्पेंड कर दिया है। कई राजनेता इसे समझौते के कारण अटके पुराने प्रोजेक्ट्स के पूरा करने का सुनहरा मौका मान रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के सीएम ने उत्तर कश्मीर में तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट को दोबारा शुरू करने की बात कही है। उन्होंने कहा कि अगर यह प्रोजेक्ट पूरा हुआ तो हम झेलम का उपयोग नेविगेशन और डाउनस्ट्रीम बिजली प्रोजेक्ट के लिए कर सकेंगे। पाकिस्तान के दबाव के कारण 1987 में इस परियोजना को रोक दिया गया था। उनके इस प्रस्ताव की पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने विरोध किया है। उमर अब्दुल्ला ने शेयर किया बैराज का वीडियोसीएम उमर अब्दुल्ला ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक 30 सेकंड का वीडियो क्लिप पोस्ट किया। इस वीडियो में वुलर झील और तुलबुल नेविगेशन बैराज का रुका हुआ सिविल वर्क दिखाया गया है। पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि तुलबुल प्रोजेक्ट 1980 के दशक में शुरू हुआ था, लेकिन पाकिस्तान के प्रेशर के कारण इसे छोड़ना पड़ा, जिसने सिंधु जल संधि का हवाला दिया था। अब जब सिंधु जल समझौते को 'अस्थायी रूप से निलंबित' कर दिया गया है, तो क्या हम इस प्रोजेक्ट को फिर से शुरू कर पाएंगे। इससे हमें झेलम का उपयोग नेविगेशन के लिए करने का लाभ मिलेगा। इससे डाउनस्ट्रीम पावर प्रोजेक्ट्स विशेष रूप से सर्दियों में बिजली उत्पादन में भी सुधार करेगा। पाकिस्तान के आपत्ति के बाद रुका था प्रोजेक्टभारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि को लेकर लंबे समय से विवाद रहा है। पाकिस्तान की दलील है कि तुलबुल प्रोजेक्ट सिंधु जल संधि का उल्लंघन करता है, क्योंकि इससे झेलम नदी में पानी का भंडारण होगा। पाकिस्तान का दावा है कि तुलबुल प्रोजेक्ट 0.369 बिलियन क्यूबिक मीटर की भंडारण क्षमता वाला बैराज है। वहीं, भारत का कहना है कि यह परियोजना केवल नेविगेशन के लिए है और इससे पानी का भंडारण नहीं होगा। दोनों देशों के बीच इस मुद्दे पर कई बार बातचीत हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकला। आखिरी बार भारत ने पाकिस्तान से 2014 में बात की थी। तब भारत के जल संसाधन मंत्री गुलाम नबी आजाद ने संसद को पाकिस्तान के साथ चल रही चर्चा के बारे में बताया और काम फिर से शुरू करने के लिए कोई समय सीमा देने से इनकार कर दिया था। क्या है तुलबुल प्रोजेक्ट, जान लीजिए तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट को वुलर बैराज प्रोजेक्ट के नाम से भी जाना जाता है। इसे 1980 के दशक में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य कश्मीर के तीन जिलों अनंतनाग, श्रीनगर और बारामूला को साल भर नेविगेशन से जोड़ना था। साथ ही, वुलर झील से झेलम नदी में कम पानी वाले सर्दियों के महीनों के दौरान पानी को कम से कम गहराई 1.4 मीटर तक बनाए रखना है। सर्दियों के महीनों में डाउनस्ट्रीम में बिजली पैदा करना भी इसका लक्ष्य था। पाकिस्तान ने इस प्रोजेक्ट पर सिंधु जल समझौते का हवाला देते हुए आपत्ति जताई थी। समझौते में कुछ ऐसी नियम हैं, जो झेलम नदी के पानी का भंडारण नहीं किया जा सकता है। झेलम नदी भी सिंधु बेसन का हिस्सा है।
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