अकेले केवल पूजा-पाठ, ज्योतिषीय उपाय से जीवन की दिशा नहीं बदल सकती है। जब तक व्यक्ति स्वयं आत्मविश्लेषण कर अपने आंतरिक दोषों को स्वीकार नहीं करता और उन्हें सुधारने का प्रयास नहीं करता, तब तक कोई भी उपाय स्थायी रूप से लाभकारी नहीं हो सकता। वास्तव में ज्योतिष तभी फलित होता है जब व्यक्ति भीतर से भी बदलाव के लिए तत्पर हो। यानी जीवन में असली चमत्कार तब होता है जब व्यक्ति अपने भीतर के दोषों को पहचानकर उन्हें सुधारने का प्रयास करता है। ज्योतिष एक मार्गदर्शक प्रकाश की तरह है, जो सही दिशा दिखाता है, आंतरिक परिवर्तन और सकारात्मक कर्म ही ज्योतिषीय उपायों को फलित करने की आधारशिला बनते हैं।जब व्यक्ति सोचता कुछ और है, बोलता कुछ और है और करता कुछ और ही है, तो वह जाने-अनजाने में अपने भाग्य को विकृत कर देता है। शास्त्रों में कहा गया है, यथाभावं तथा भवति, अर्थात जैसे आपके भाव होंगे, वैसा ही आपका भविष्य बनेगा। यदि व्यक्ति नित्य आत्मनिरीक्षण करे, अपने दोषों को स्वीकार कर उन्हें दूर करने का प्रयास करे, तो निश्चित रूप से सरल उपायों द्वारा भी उसका भाग्य परिवर्तित हो सकता है।आम भाषा में बोलें तो, भाग्य कोई स्थायी, पत्थर पर लिखा हुआ नहीं है। यह हमारे संस्कारों और व्यवहार के द्वारा निरंतर गढ़ा जा रहा है। यदि हम सचमुच अपना जीवन बदलना चाहते हैं, तो पहले अपने विचार, व्यवहार और दृष्टिकोण को बदलना होगा। यही परिवर्तन अंततः हमारे जीवन में सौभाग्य, शांति और सफलता का मार्ग खोलता है।यदि व्यक्ति के संस्कार नकारात्मक हों, जैसे आलस्य, ईर्ष्या, क्रोध, छल, कपट, तो वह कितनी भी बाहरी प्रगति कर ले, अंततः पतन की ओर ही बढ़ता है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति धैर्य, परिश्रम, करुणा, विनम्रता और सेवा जैसे सद्गुणों को विकसित करे, तो परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करता है। संस्कार रूपी मानसिक धारणाएं व्यक्ति के विचार, निर्णय और कर्मों को नियंत्रित करती हैं। ये संस्कार या तो जन्मजात होते हैं या फिर समाज, परिवार और परिवेश के माध्यम से विकसित होते हैं। इसलिए कहा जाता है कि संस्कारों का परिवर्तन और व्यवहार की शुद्धता ही जीवन में भाग्योदय की सच्ची और स्थायी गारंटी है। इस प्रकार अनेक कारक मिलकर जीवन की दिशा को सकारात्मक बना देते हैं।
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