नई दिल्ली: कच्चे तेल (क्रूड) के बाजार में जबरदस्त अनिश्चितता है। कीमतों में शुक्रवार को गिरावट आई। यह लगातार तीसरे महीने की गिरावट की ओर बढ़ रहा है। डॉलर के मजबूत होने से क्रूड की बढ़त पर लगाम लगी। वहीं, बड़े उत्पादकों से बढ़ती सप्लाई ने रूस के तेल निर्यात पर लगे पश्चिमी प्रतिबंधों के असर को कम कर दिया। ब्रेंट क्रूड फ्यूचर्स 33 सेंट यानी 0.51% गिरकर 64.67 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया। वहीं, अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड 35 सेंट यानी 0.58% टूटकर 60.22 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा था। सबकी नजर अब रविवार को होने वाली ओपेक+ की बैठक पर टिकी हैं। भारत के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है। बैठक में लगभग 1,37,000 बैरल प्रति दिन (बीपीडी) सप्लाई बढ़ाए जाने की उम्मीद है। इससे ओवरसप्लाई का डर बढ़ रहा है। हालांकि, भारत के लिए यह स्थिति अच्छी है। भारत अपनी ऊर्जा जरूरत का लगभग 85% आयात करता है।
एएनजेड के विश्लेषकों ने एक नोट में कहा कि मजबूत डॉलर ने कमोडिटी बाजार में निवेशकों की दिलचस्पी कम कर दिया। फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने बुधवार को कहा था कि दिसंबर में ब्याज दरों में कटौती की कोई गारंटी नहीं है। इसी के चलते डॉलर को मजबूती मिली।
इस अक्टूबर में ब्रेंट और डब्ल्यूटीआई दोनों में लगभग 3% की गिरावट आने की उम्मीद है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस साल डिमांड से ज्यादा सप्लाई बढ़ने की उम्मीद है। तेल निर्यातक देशों का संगठन (ओपेक) और प्रमुख गैर-ओपेक उत्पादक देश बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए उत्पादन बढ़ा रहे हैं।
क्रूड की सप्लाई बढ़ने की उम्मीद
रूस के तेल निर्यात पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बावजूद बढ़ती सप्लाई इन प्रतिबंधों के असर को कम करेगी। रूस अपने प्रमुख खरीदारों चीन और भारत को तेल निर्यात में रुकावट का सामना कर रहा है। रविवार को होने वाली बैठक से पहले ओपेक+ दिसंबर में उत्पादन में मामूली बढ़ोतरी करने पर विचार कर रहा है। ओपेक+ में 22 देश हैं। इसके आठ सदस्य देशों ने पिछले कुछ महीनों में कुल मिलाकर 27 लाख बैरल प्रति दिन से ज्यादा उत्पादन बढ़ाया है। यह ग्लोबल सप्लाई का लगभग 2.5% है।
वहीं, ज्वाइंट ऑर्गनाइजेशन डेटा इनीशिएटिव (JODI) के बुधवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, अगस्त में सऊदी अरब से कच्चे तेल का निर्यात छह महीने के ऊंचे स्तर 64.07 लाख डॉलर बैरल प्रति दिन पर पहुंच गया। यह आगे और भी बढ़ने की उम्मीद है।
अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन (ईआईए) की एक रिपोर्ट में यह भी दिखाया गया कि पिछले हफ्ते अमेरिका में रिकॉर्ड 1.36 करोड़ बीपीडी उत्पादन हुआ।
अमेरिका-चीने सौदे का कितना असर? अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को कहा कि चीन अमेरिकी ऊर्जा उत्पादों की खरीद शुरू करने पर सहमत हो गया है। अलास्का से तेल और गैस की बहुत बड़ी खरीद हो सकती है। हालांकि, विश्लेषक इस बात को लेकर संशय में हैं कि क्या अमेरिका-चीन व्यापार सौदा चीनी ऊर्जा मांग को बढ़ाएगा।
बार्कलेज के विश्लेषक माइकल मैकलीन ने एक नोट में कहा, 'अलास्का कुल अमेरिकी कच्चे तेल उत्पादन का केवल 3% उत्पादन करता है (यह महत्वपूर्ण नहीं है) और हमें लगता है कि चीन की ओर से अलास्का एलएनजी की खरीद बाजार-संचालित होगी।'
भारत पर होगा क्या असर?अगर ओपेक+ समूह वैश्विक बाजार में तेल की सप्लाई बढ़ाता है तो भारत को तात्कालिक रूप से सकारात्मक राहत मिलेगी। भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का लगभग 85% आयात करता है। इसलिए वैश्विक स्तर पर ब्रेंट और WTI क्रूड का सस्ता होना सीधे आयात बिल को कम करेगा और विदेशी मुद्रा की बचत करेगा। हालांकि, इस लाभ पर रूसी तेल कंपनियों (रोसनेफ्ट और ल्यूकोइल) पर अमेरिकी प्रतिबंधों की छाया पड़ रही है। इन प्रतिबंधों ने भारत को उसके सबसे बड़े और सस्ते सप्लायर (रूस) से दूर कर दिया है। इससे भारत को मजबूरन अधिक महंगे वैकल्पिक स्रोत (जैसे मध्य पूर्व या अमेरिका) की ओर रुख करना पड़ रहा है। इस बढ़ी हुई लागत (खरीद और ढुलाई) से ओपेक+ की सप्लाई वृद्धि से मिलने वाला पूरा लाभ सीमित हो जाएगा।
ओपेक+ की ओर से सप्लाई बढ़ाए जाने और आईईए की 2026 में रिकॉर्ड सरप्लस की चेतावनी से तेल की कीमतों में स्थिरता आ सकती है, जो भारत की अर्थव्यवस्था के लिए दीर्घकालिक रूप से अनुकूल है। कारण है कि यह महंगाई के दबाव को कम करेगा। सस्ता क्रूड, प्लास्टिक, पेंट और एविएशन जैसे उद्योगों के लिए उत्पादन लागत घटाएगा।
एएनजेड के विश्लेषकों ने एक नोट में कहा कि मजबूत डॉलर ने कमोडिटी बाजार में निवेशकों की दिलचस्पी कम कर दिया। फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने बुधवार को कहा था कि दिसंबर में ब्याज दरों में कटौती की कोई गारंटी नहीं है। इसी के चलते डॉलर को मजबूती मिली।
इस अक्टूबर में ब्रेंट और डब्ल्यूटीआई दोनों में लगभग 3% की गिरावट आने की उम्मीद है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस साल डिमांड से ज्यादा सप्लाई बढ़ने की उम्मीद है। तेल निर्यातक देशों का संगठन (ओपेक) और प्रमुख गैर-ओपेक उत्पादक देश बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए उत्पादन बढ़ा रहे हैं।
क्रूड की सप्लाई बढ़ने की उम्मीद
रूस के तेल निर्यात पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बावजूद बढ़ती सप्लाई इन प्रतिबंधों के असर को कम करेगी। रूस अपने प्रमुख खरीदारों चीन और भारत को तेल निर्यात में रुकावट का सामना कर रहा है। रविवार को होने वाली बैठक से पहले ओपेक+ दिसंबर में उत्पादन में मामूली बढ़ोतरी करने पर विचार कर रहा है। ओपेक+ में 22 देश हैं। इसके आठ सदस्य देशों ने पिछले कुछ महीनों में कुल मिलाकर 27 लाख बैरल प्रति दिन से ज्यादा उत्पादन बढ़ाया है। यह ग्लोबल सप्लाई का लगभग 2.5% है।
वहीं, ज्वाइंट ऑर्गनाइजेशन डेटा इनीशिएटिव (JODI) के बुधवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, अगस्त में सऊदी अरब से कच्चे तेल का निर्यात छह महीने के ऊंचे स्तर 64.07 लाख डॉलर बैरल प्रति दिन पर पहुंच गया। यह आगे और भी बढ़ने की उम्मीद है।
अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन (ईआईए) की एक रिपोर्ट में यह भी दिखाया गया कि पिछले हफ्ते अमेरिका में रिकॉर्ड 1.36 करोड़ बीपीडी उत्पादन हुआ।
अमेरिका-चीने सौदे का कितना असर? अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को कहा कि चीन अमेरिकी ऊर्जा उत्पादों की खरीद शुरू करने पर सहमत हो गया है। अलास्का से तेल और गैस की बहुत बड़ी खरीद हो सकती है। हालांकि, विश्लेषक इस बात को लेकर संशय में हैं कि क्या अमेरिका-चीन व्यापार सौदा चीनी ऊर्जा मांग को बढ़ाएगा।
बार्कलेज के विश्लेषक माइकल मैकलीन ने एक नोट में कहा, 'अलास्का कुल अमेरिकी कच्चे तेल उत्पादन का केवल 3% उत्पादन करता है (यह महत्वपूर्ण नहीं है) और हमें लगता है कि चीन की ओर से अलास्का एलएनजी की खरीद बाजार-संचालित होगी।'
भारत पर होगा क्या असर?अगर ओपेक+ समूह वैश्विक बाजार में तेल की सप्लाई बढ़ाता है तो भारत को तात्कालिक रूप से सकारात्मक राहत मिलेगी। भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का लगभग 85% आयात करता है। इसलिए वैश्विक स्तर पर ब्रेंट और WTI क्रूड का सस्ता होना सीधे आयात बिल को कम करेगा और विदेशी मुद्रा की बचत करेगा। हालांकि, इस लाभ पर रूसी तेल कंपनियों (रोसनेफ्ट और ल्यूकोइल) पर अमेरिकी प्रतिबंधों की छाया पड़ रही है। इन प्रतिबंधों ने भारत को उसके सबसे बड़े और सस्ते सप्लायर (रूस) से दूर कर दिया है। इससे भारत को मजबूरन अधिक महंगे वैकल्पिक स्रोत (जैसे मध्य पूर्व या अमेरिका) की ओर रुख करना पड़ रहा है। इस बढ़ी हुई लागत (खरीद और ढुलाई) से ओपेक+ की सप्लाई वृद्धि से मिलने वाला पूरा लाभ सीमित हो जाएगा।
ओपेक+ की ओर से सप्लाई बढ़ाए जाने और आईईए की 2026 में रिकॉर्ड सरप्लस की चेतावनी से तेल की कीमतों में स्थिरता आ सकती है, जो भारत की अर्थव्यवस्था के लिए दीर्घकालिक रूप से अनुकूल है। कारण है कि यह महंगाई के दबाव को कम करेगा। सस्ता क्रूड, प्लास्टिक, पेंट और एविएशन जैसे उद्योगों के लिए उत्पादन लागत घटाएगा।
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