शक्तिशाली आर्थिक संगठन आसियान के दो सदस्य देशों, थाईलैंड और कंबोडिया में हफ्ते भर से युद्ध की स्थिति बनी हुई है। दोनों देशों में 95% से ज्यादा आबादी बौद्ध है। दोनों के हित एक से हैं। फिर भी लगातार जारी गोलाबारी में 30 से ज्यादा लोग मारे गए हैं, जिनमें 21 सामान्य नागरिक और बाकी सैनिक हैं। फिलहाल आसियान की अध्यक्षता कर रहे मलेशिया की पहल पर दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच युद्ध विराम के लिए प्रारंभिक स्तर की बातचीत हुई है, लेकिन यह कितनी कारगर हो पाती है, समय बताएगा।
ट्रंप ने लिया श्रेय: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस बैठक का श्रेय खुद लेते हुए कहा कि दोनों प्रधानमंत्रियों से फोन पर उनकी वार्ता अभी खत्म भी हुई नहीं थी कि बातचीत पर राजी हो जाने के बयान दोनों तरफ से आ गए। उनके मुताबिक, इसमें मुख्य भूमिका व्यापार रोक देने की उनकी धमकी की थी। बहरहाल, शनिवार के दिन दोनों प्रधानमंत्रियों से ट्रंप की बात हुई और रविवार का दिन सबसे भयानक बमबारी का साबित हुआ। इससे पहले ट्रंप भारत-पाक और ईरान-इस्राइल टकराव सुलझाने का श्रेय भी ले चुके हैं, भले ही इनमें शामिल पक्ष उनके दावे से राजी हों या न हों।
राजवंशों के दौर की प्रतिद्वंद्विता: दोनों देशों में अभी दो तरह के वंश चल रहे हैं। राजवंशों के स्तर पर थाईलैंड (पुराना नाम सियाम) और कंबोडिया (पुराना नाम कंबोज) के राजाओं में बहुत पहले से प्रतिद्वंद्विता चली आ रही है, जबकि लोकतांत्रिक स्तर पर दोनों देशों के चुने हुए प्रधानमंत्रियों की भी 30-40 साल पुरानी वंश परंपरा चल रही है। दिलचस्प है कि इनकी ज्यादातर चर्चा आपस की दोस्ती को लेकर होती रही है।
राजनीति पर काबिज वंशवाद: थाईलैंड की लोकतांत्रिक राजनीति पर पिछले तीन दशक से भी ज्यादा समय से ताक्सिन शिनवात्र नाम के एक अमीर राजनेता का दबदबा रहा है। बीच-बीच में हंगामा उठता है तो उन्हें गद्दी छोड़नी पड़ती है लेकिन फिर वह वापस भी लौट आते हैं। इस बार 2023 में हुई वापसी के बाद उन्होंने नया गेम यह खेला कि अपनी बेटी पैतोंगतार्न शिनवात्र का नाम देश के प्रधानमंत्री पद के लिए आगे कर दिया। दूसरी तरफ, कंबोडिया की कुख्यात कम्युनिस्ट क्रांति का खेल खत्म होने के बाद कोई चार दशक से वहां हुन सेन नाम के सज्जन प्रधानमंत्री का पद संभालते आए हैं। अपने बाद भी अपनी सत्ता कायम रखने के ख्याल से हाल में उन्होंने अपने बेटे हुन मानेत को प्रधानमंत्री बनाया है।
फेसबुक पर डाली बातचीत: हुन सेन ने पता नहीं क्या सोचकर पैतोंगतार्न शिनवात्र के साथ अपनी एक टेलिफोन कॉल को जुलाई की शुरुआत में ही अपने फेसबुक पेज पर डाल दिया। इसमें थाईलैंड की शासक उन्हें ‘अंकल’ कहकर संबोधित कर रही हैं और आश्वासन दे रही हैं कि उनके देश की ओर से कोई भी समस्या उन्हें महसूस हो तो वे बताएं, बिना देर किए उसे हल कर दिया जाएगा। थाईलैंड के मीडिया ने इस कॉल को देशद्रोह की तरह प्रस्तुत किया। मामला वहां की संवैधानिक अदालत में गया, जिसने पैतोंगतार्न शिनवात्र को तत्काल प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया। ताक्सिन शिनवात्र ने अपनी बेटी की दुर्गति को हुन सेन का खेल बताया।
बेटे की गद्दी की चिंता: थाई पक्ष का कहना है कि हुन सेन कंबोडिया में राष्ट्रवादी लहर पैदा करके वहां अपने बेटे की गद्दी पुख्ता कर रहे हैं। यह भी कि शिनवात्र परिवार को थाई राष्ट्रवाद के मोर्चे पर कमजोर करके उन्होंने अपना एक कांटा काट दिया है। इस बात में अगर सचाई है तो बाहर से कोई कितनी भी कोशिश कर ले, लड़ाई लंबी खींचने के तरीके खोज लिए जाएंगे। थाईलैंड की सैन्य शक्ति कंबोडिया से बहुत ज्यादा है, लेकिन शांति के लिए यह काफी नहीं होगा।
सीमावर्ती मंदिर: बहरहाल, मामले की थाई समझ ठीक न हो और कंबोडिया वाकई सीमा पर थाईलैंड की आक्रामकता झेल रहा हो तो इस बारे में एक बुनियादी तथ्य यह है कि दोनों देशों की सीमा पर कुछ बहुत पुराने मंदिर स्थित हैं। ये मंदिर पहले शैव धर्म के केंद्र हुआ करते थे, फिर उनमें महायानी बोधिसत्वों की प्रतिष्ठा हुई और अभी दोनों देशों में थेरवादी (हीनयानी) परंपरा कायम हो गई। जाहिर है उसके बाद की स्थिति में इनका पुरातात्विक या पर्यटन संबंधी महत्व ही शेष रह गया है।
दुनिया का नुकसान: सीमा की गोलाबारी से अगर प्रसात प्रीह व्येहार (प्रसाद प्रिय विहार) को कोई नुकसान होता है तो यह सिर्फ कंबोडिया की नहीं, पूरी दुनिया की क्षति होगी। सुदूर पश्चिम में आर्मीनिया के एक बौद्ध संत ने दोनों राष्ट्राध्यक्षों को बुद्ध के नाम पर तत्काल लड़ाई बंद कर देने की अपील वाला जो पत्र लिखा है, एक सदिच्छा के रूप में वह सबके लिए पठनीय है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
ट्रंप ने लिया श्रेय: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस बैठक का श्रेय खुद लेते हुए कहा कि दोनों प्रधानमंत्रियों से फोन पर उनकी वार्ता अभी खत्म भी हुई नहीं थी कि बातचीत पर राजी हो जाने के बयान दोनों तरफ से आ गए। उनके मुताबिक, इसमें मुख्य भूमिका व्यापार रोक देने की उनकी धमकी की थी। बहरहाल, शनिवार के दिन दोनों प्रधानमंत्रियों से ट्रंप की बात हुई और रविवार का दिन सबसे भयानक बमबारी का साबित हुआ। इससे पहले ट्रंप भारत-पाक और ईरान-इस्राइल टकराव सुलझाने का श्रेय भी ले चुके हैं, भले ही इनमें शामिल पक्ष उनके दावे से राजी हों या न हों।
राजवंशों के दौर की प्रतिद्वंद्विता: दोनों देशों में अभी दो तरह के वंश चल रहे हैं। राजवंशों के स्तर पर थाईलैंड (पुराना नाम सियाम) और कंबोडिया (पुराना नाम कंबोज) के राजाओं में बहुत पहले से प्रतिद्वंद्विता चली आ रही है, जबकि लोकतांत्रिक स्तर पर दोनों देशों के चुने हुए प्रधानमंत्रियों की भी 30-40 साल पुरानी वंश परंपरा चल रही है। दिलचस्प है कि इनकी ज्यादातर चर्चा आपस की दोस्ती को लेकर होती रही है।
राजनीति पर काबिज वंशवाद: थाईलैंड की लोकतांत्रिक राजनीति पर पिछले तीन दशक से भी ज्यादा समय से ताक्सिन शिनवात्र नाम के एक अमीर राजनेता का दबदबा रहा है। बीच-बीच में हंगामा उठता है तो उन्हें गद्दी छोड़नी पड़ती है लेकिन फिर वह वापस भी लौट आते हैं। इस बार 2023 में हुई वापसी के बाद उन्होंने नया गेम यह खेला कि अपनी बेटी पैतोंगतार्न शिनवात्र का नाम देश के प्रधानमंत्री पद के लिए आगे कर दिया। दूसरी तरफ, कंबोडिया की कुख्यात कम्युनिस्ट क्रांति का खेल खत्म होने के बाद कोई चार दशक से वहां हुन सेन नाम के सज्जन प्रधानमंत्री का पद संभालते आए हैं। अपने बाद भी अपनी सत्ता कायम रखने के ख्याल से हाल में उन्होंने अपने बेटे हुन मानेत को प्रधानमंत्री बनाया है।
फेसबुक पर डाली बातचीत: हुन सेन ने पता नहीं क्या सोचकर पैतोंगतार्न शिनवात्र के साथ अपनी एक टेलिफोन कॉल को जुलाई की शुरुआत में ही अपने फेसबुक पेज पर डाल दिया। इसमें थाईलैंड की शासक उन्हें ‘अंकल’ कहकर संबोधित कर रही हैं और आश्वासन दे रही हैं कि उनके देश की ओर से कोई भी समस्या उन्हें महसूस हो तो वे बताएं, बिना देर किए उसे हल कर दिया जाएगा। थाईलैंड के मीडिया ने इस कॉल को देशद्रोह की तरह प्रस्तुत किया। मामला वहां की संवैधानिक अदालत में गया, जिसने पैतोंगतार्न शिनवात्र को तत्काल प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया। ताक्सिन शिनवात्र ने अपनी बेटी की दुर्गति को हुन सेन का खेल बताया।
बेटे की गद्दी की चिंता: थाई पक्ष का कहना है कि हुन सेन कंबोडिया में राष्ट्रवादी लहर पैदा करके वहां अपने बेटे की गद्दी पुख्ता कर रहे हैं। यह भी कि शिनवात्र परिवार को थाई राष्ट्रवाद के मोर्चे पर कमजोर करके उन्होंने अपना एक कांटा काट दिया है। इस बात में अगर सचाई है तो बाहर से कोई कितनी भी कोशिश कर ले, लड़ाई लंबी खींचने के तरीके खोज लिए जाएंगे। थाईलैंड की सैन्य शक्ति कंबोडिया से बहुत ज्यादा है, लेकिन शांति के लिए यह काफी नहीं होगा।
सीमावर्ती मंदिर: बहरहाल, मामले की थाई समझ ठीक न हो और कंबोडिया वाकई सीमा पर थाईलैंड की आक्रामकता झेल रहा हो तो इस बारे में एक बुनियादी तथ्य यह है कि दोनों देशों की सीमा पर कुछ बहुत पुराने मंदिर स्थित हैं। ये मंदिर पहले शैव धर्म के केंद्र हुआ करते थे, फिर उनमें महायानी बोधिसत्वों की प्रतिष्ठा हुई और अभी दोनों देशों में थेरवादी (हीनयानी) परंपरा कायम हो गई। जाहिर है उसके बाद की स्थिति में इनका पुरातात्विक या पर्यटन संबंधी महत्व ही शेष रह गया है।
दुनिया का नुकसान: सीमा की गोलाबारी से अगर प्रसात प्रीह व्येहार (प्रसाद प्रिय विहार) को कोई नुकसान होता है तो यह सिर्फ कंबोडिया की नहीं, पूरी दुनिया की क्षति होगी। सुदूर पश्चिम में आर्मीनिया के एक बौद्ध संत ने दोनों राष्ट्राध्यक्षों को बुद्ध के नाम पर तत्काल लड़ाई बंद कर देने की अपील वाला जो पत्र लिखा है, एक सदिच्छा के रूप में वह सबके लिए पठनीय है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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