नई दिल्ली: कॉर्पोरेट वर्ल्ड के कर्मचारी इस समय थकान, मोटापा, डायबिटीज जैसी खास बीमारियों से जूझ रहे हैं। इन सभी बीमारियों के पीछे एक ही कारण है। और वह है नींद न आना। दरअसल, आजकल कंपनियों में काम करने वाले बहुत से लोग नींद की कमी से परेशान हैं। काम का दबाव इतना ज्यादा है कि उनकी नींद उड़ गई है। तनाव में रहने वाले कर्मचारी अब नींद के एक्सपर्ट्स के पास जा रहे हैं ताकि उन्हें ठीक से नींद आ सके।
लंबे समय तक काम करना, हमेशा अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव, खराब माहौल वाली जगहें, नौकरी की असुरक्षा और डिजिटल उपकरणों का ज्यादा इस्तेमाल, ये सब कर्मचारियों पर बुरा असर डाल रहे हैं। सबसे पहले उनकी नींद गायब हो जाती है। इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार इस वजह से वे हमेशा थके हुए, सुस्त और चिड़चिड़े रहते हैं। उन्हें ध्यान लगाने में भी परेशानी होती है। इससे मोटापा, डायबिटीज, दिल की बीमारियां, भूलने की बीमारी और भ्रम जैसी कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
गुस्सा और चिल्लाने की आदतदिल्ली के न्यूरोलॉजी स्लीप सेंटर के डायरेक्टर डॉ. मनवीर भाटिया ने बताया कि एक स्टार्टअप के मालिक उनके पास आए। वह काम पर बहुत जल्दी गुस्सा हो जाते थे और कर्मचारियों पर चिल्लाते थे। उनकी उम्र 30 के आसपास थी और वे सिर्फ 4 से 4.5 घंटे ही सोते थे।
एक और मामला सामने आया। एक बड़े होटल में काम करने वाला व्यक्ति लगातार यात्रा करता रहता था। उसे नींद आने के लिए गोलियां खानी पड़ती थीं, जिसकी उसे लत लग गई। फिर उसने मदद के लिए संपर्क किया।
तीन गुना बढ़ गए मरीजडॉ. भाटिया का कहना है कि अब वे हर दिन पहले के मुकाबले तीन गुना ज्यादा मरीज देखती हैं। COVID से पहले वे जितने मरीज देखती थीं, अब उनकी संख्या बहुत बढ़ गई है। कॉर्पोरेट कर्मचारियों के लिए काम के घंटे बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं। वे बताती हैं कि बहुत से लोग बैठकर काम करते हैं। उनके खाने-पीने का समय भी ठीक नहीं रहता है।
इस उम्र में ज्यादा परेशानीडॉ. भाटिया कहती हैं, 'हम 30 और 40 साल के ऐसे लोगों को देखते हैं जिनकी नींद पूरी नहीं होती और उनकी सेहत खराब हो जाती है। उनका वजन बढ़ जाता है, जिससे स्लीप एपनिया हो जाता है। फिर डायबिटीज, हाई बीपी और याददाश्त कमजोर होने जैसी समस्याएं होती हैं। इससे काम करने की क्षमता भी कम हो जाती है और लोग ज़्यादा छुट्टी लेने लगते हैं।'
ज्यादा यात्रा भी कारणदिल्ली (इंद्रप्रस्थ) स्थित अपोलो हॉस्पिटल्स में स्लीप मेडिसिन कंसल्टेंट डॉ. विनी कांट्रू का कहना है कि कई बार बड़े कॉर्पोरेट अधिकारियों को यह समस्या इसलिए होती है क्योंकि वे बहुत यात्रा करते हैं और गलत खाना खाते हैं। इसके अलावा, वे वीकेंड पर भी काम करते हैं।
डॉ. कांट्रू कहती हैं कि आजकल बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा है और लोगों पर मानसिक तनाव भी बहुत है। इस वजह से काम और घर के बीच की सीमा धुंधली हो गई है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, इससे लोगों की निजी जिंदगी भी प्रभावित हो रही है। कई लोग 'स्लीप डिवोर्स' कर रहे हैं, यानी बेहतर नींद के लिए पति-पत्नी अलग-अलग कमरों में सो रहे हैं।
गैजेट्स की ले रहे मददनिथ्रा स्लीप क्लिनिक के डायरेक्टर हैं डॉ. एन. रामकृष्णन कहते हैं कि कई टेक-सेवी लोग अपनी नींद को ट्रैक करने के लिए स्लीप ट्रैकर्स का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इससे उन्हें और ज्यादा तनाव होता है क्योंकि वे हमेशा नंबर्स को देखते रहते हैं।
डॉ. रामकृष्णन के अनुसार, कॉर्पोरेट जगत में बहुत से लोगों की नींद का पैटर्न बिगड़ गया है। उनके ज्यादातर मरीज 35-45 साल की उम्र के हैं। उनमें से कई लोगों को तनाव और नींद की कमी के कारण बीपी, डायबिटीज और अन्य बीमारियां भी हैं।
लंबे समय तक काम करना, हमेशा अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव, खराब माहौल वाली जगहें, नौकरी की असुरक्षा और डिजिटल उपकरणों का ज्यादा इस्तेमाल, ये सब कर्मचारियों पर बुरा असर डाल रहे हैं। सबसे पहले उनकी नींद गायब हो जाती है। इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार इस वजह से वे हमेशा थके हुए, सुस्त और चिड़चिड़े रहते हैं। उन्हें ध्यान लगाने में भी परेशानी होती है। इससे मोटापा, डायबिटीज, दिल की बीमारियां, भूलने की बीमारी और भ्रम जैसी कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
गुस्सा और चिल्लाने की आदतदिल्ली के न्यूरोलॉजी स्लीप सेंटर के डायरेक्टर डॉ. मनवीर भाटिया ने बताया कि एक स्टार्टअप के मालिक उनके पास आए। वह काम पर बहुत जल्दी गुस्सा हो जाते थे और कर्मचारियों पर चिल्लाते थे। उनकी उम्र 30 के आसपास थी और वे सिर्फ 4 से 4.5 घंटे ही सोते थे।
एक और मामला सामने आया। एक बड़े होटल में काम करने वाला व्यक्ति लगातार यात्रा करता रहता था। उसे नींद आने के लिए गोलियां खानी पड़ती थीं, जिसकी उसे लत लग गई। फिर उसने मदद के लिए संपर्क किया।
तीन गुना बढ़ गए मरीजडॉ. भाटिया का कहना है कि अब वे हर दिन पहले के मुकाबले तीन गुना ज्यादा मरीज देखती हैं। COVID से पहले वे जितने मरीज देखती थीं, अब उनकी संख्या बहुत बढ़ गई है। कॉर्पोरेट कर्मचारियों के लिए काम के घंटे बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं। वे बताती हैं कि बहुत से लोग बैठकर काम करते हैं। उनके खाने-पीने का समय भी ठीक नहीं रहता है।
इस उम्र में ज्यादा परेशानीडॉ. भाटिया कहती हैं, 'हम 30 और 40 साल के ऐसे लोगों को देखते हैं जिनकी नींद पूरी नहीं होती और उनकी सेहत खराब हो जाती है। उनका वजन बढ़ जाता है, जिससे स्लीप एपनिया हो जाता है। फिर डायबिटीज, हाई बीपी और याददाश्त कमजोर होने जैसी समस्याएं होती हैं। इससे काम करने की क्षमता भी कम हो जाती है और लोग ज़्यादा छुट्टी लेने लगते हैं।'
ज्यादा यात्रा भी कारणदिल्ली (इंद्रप्रस्थ) स्थित अपोलो हॉस्पिटल्स में स्लीप मेडिसिन कंसल्टेंट डॉ. विनी कांट्रू का कहना है कि कई बार बड़े कॉर्पोरेट अधिकारियों को यह समस्या इसलिए होती है क्योंकि वे बहुत यात्रा करते हैं और गलत खाना खाते हैं। इसके अलावा, वे वीकेंड पर भी काम करते हैं।
डॉ. कांट्रू कहती हैं कि आजकल बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा है और लोगों पर मानसिक तनाव भी बहुत है। इस वजह से काम और घर के बीच की सीमा धुंधली हो गई है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, इससे लोगों की निजी जिंदगी भी प्रभावित हो रही है। कई लोग 'स्लीप डिवोर्स' कर रहे हैं, यानी बेहतर नींद के लिए पति-पत्नी अलग-अलग कमरों में सो रहे हैं।
गैजेट्स की ले रहे मददनिथ्रा स्लीप क्लिनिक के डायरेक्टर हैं डॉ. एन. रामकृष्णन कहते हैं कि कई टेक-सेवी लोग अपनी नींद को ट्रैक करने के लिए स्लीप ट्रैकर्स का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इससे उन्हें और ज्यादा तनाव होता है क्योंकि वे हमेशा नंबर्स को देखते रहते हैं।
डॉ. रामकृष्णन के अनुसार, कॉर्पोरेट जगत में बहुत से लोगों की नींद का पैटर्न बिगड़ गया है। उनके ज्यादातर मरीज 35-45 साल की उम्र के हैं। उनमें से कई लोगों को तनाव और नींद की कमी के कारण बीपी, डायबिटीज और अन्य बीमारियां भी हैं।
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