राजस्थान में बिजली सुधारों की दिशा में उठाया गया स्मार्ट मीटर योजना का कदम फिलहाल संकट में है। 14 हजार करोड़ रुपये की इस महत्वाकांक्षी योजना के अंतर्गत 1.43 करोड़ स्मार्ट मीटर लगाए जाने थे, लेकिन शुरुआत में ही यह योजना लड़खड़ा गई है। अब तक लगने चाहिए थे 14 लाख मीटर, लेकिन आंकड़ा 3 लाख से भी नीचे है। इस देरी के चलते न केवल केंद्र सरकार से मिलने वाली सब्सिडी अटकने की संभावना है, बल्कि उपभोक्ताओं को मिलने वाली सुविधाएं भी लटक गई हैं। डिस्कॉम्स ने टेंडर लेने वाली कंपनी को अंतिम चेतावनी दी है—तीन महीने में प्रगति नहीं हुई, तो अनुबंध रद्द कर दिया जाएगा।
स्मार्ट मीटर योजना की धीमी रफ्तार: सिर्फ 20% काम हुआ पूरा
स्मार्ट मीटर योजना की धीमी रफ्तार शुरू से ही राजस्थान में चिंता का विषय बनी हुई है। प्रदेश सरकार ने जयपुर, अजमेर और जोधपुर के डिस्कॉम को अलग-अलग क्षेत्रों में स्मार्ट मीटर लगाने की जिम्मेदारी दी थी, लेकिन अभी तक कार्य की प्रगति काफी निराशाजनक रही है। निर्धारित लक्ष्यों की तुलना में अब तक कुल कार्य का 20 प्रतिशत भी पूरा नहीं हो सका है।
जयपुर डिस्कॉम को कुल 47.63 लाख स्मार्ट मीटर लगाने थे, लेकिन अब तक केवल 1.66 लाख मीटर ही लगाए जा सके हैं। अजमेर डिस्कॉम को 54.32 लाख मीटर लगाने की जिम्मेदारी मिली थी, परंतु अब तक केवल 0.81 लाख मीटर ही लग पाए हैं। इसी तरह, जोधपुर डिस्कॉम का लक्ष्य 40.80 लाख मीटर का था, जबकि केवल 0.40 लाख मीटर ही इंस्टॉल हो सके हैं।
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि योजना शुरुआत में ही बाधाओं और लापरवाही का शिकार हो रही है। यदि यह स्थिति बनी रही तो न केवल केंद्र सरकार की सब्सिडी अटक सकती है, बल्कि उपभोक्ताओं और डिस्कॉम—दोनों को इससे लंबे समय तक असुविधा झेलनी पड़ सकती है।
डिस्कॉम्स ने इस देरी को गंभीरता से लेते हुए जीनस मीटरिंग कम्युनिकेशन को नोटिस थमा दिया है।
चार बड़े संकट जो योजना पर पड़ रहे हैं भारी
1. केंद्र की सब्सिडी पर खतरा
राज्य सरकार ने केंद्र को आश्वासन दिया था कि दिसंबर 2026 तक सभी मीटर लगा दिए जाएंगे। लेकिन मौजूदा हालात में यह मुमकिन नहीं लगता, जिससे केंद्र की सब्सिडी रुक सकती है।
2. लागत बढ़ने का डर
अगर वर्तमान टेंडर रद्द होता है, तो पूरी प्रक्रिया दोबारा शुरू करनी होगी, जिससे न केवल काम लटक जाएगा बल्कि लागत भी कई गुना बढ़ने की आशंका है।
3. जवाबदेही तय करना जरूरी
सवाल सिर्फ ठेकेदार की विफलता का नहीं है, क्या इसमें कुछ विभागीय अफसर भी दोषी हैं? यह जांच का विषय बन चुका है।
4. स्मार्ट मीटर की विश्वसनीयता पर सवाल
इन मीटरों से जुड़े उपभोक्ताओं ने शिकायत की है कि मीटर तेज चल रहे हैं और बिल जरूरत से ज्यादा आ रहे हैं, जिससे आमजन का भरोसा डगमगा गया है। पारदर्शिता बढ़ाने के लिए उपभोक्ताओं को मीटर रीडिंग और चार्जिंग की असल प्रक्रिया की जानकारी देना आवश्यक हो गया है।
सिस्टम और उपभोक्ताओं—दोनों के लिए योजना क्यों है फायदेमंद
स्मार्ट मीटर योजना उपभोक्ताओं और बिजली कंपनियों—दोनों के लिए लाभकारी साबित हो सकती है। यह पूरी प्रणाली प्रीपेड मोड पर आधारित होगी, जिसका अर्थ है कि उपभोक्ता को पहले बिजली के लिए रिचार्ज कराना होगा, तभी उसे बिजली आपूर्ति मिलेगी। इस व्यवस्था से डिस्कॉम्स को एडवांस में राजस्व मिल जाएगा, जिससे वे उत्पादन कंपनियों को समय पर भुगतान कर सकेंगे और वित्तीय अनुशासन भी बना रहेगा।
इसके साथ ही बिलिंग और वितरण की पुरानी, जटिल प्रक्रिया पूरी तरह समाप्त हो जाएगी। अब उपभोक्ताओं को हर महीने बिल का इंतजार नहीं करना पड़ेगा और डिस्कॉम को बिल बांटने व वसूली की मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी। इसके अतिरिक्त, उपभोक्ताओं को प्रति यूनिट 15 पैसे की छूट भी दी जाएगी, जिससे उनकी जेब पर आर्थिक भार कुछ कम होगा।
सबसे बड़ी बात यह है कि उपभोक्ता अब रोजाना अपने बिजली खर्च और खपत की जानकारी अपने मोबाइल फोन पर देख सकेंगे। इससे उन्हें अपने बिजली उपयोग पर नियंत्रण रखने और बचत करने में मदद मिलेगी। कुल मिलाकर, यह योजना पारदर्शी, सुविधा संपन्न और दोनों पक्षों के लिए उपयोगी साबित हो सकती है—यदि इसे सही तरीके से और समय पर लागू किया जाए।
क्यों अटका राजस्थान का ऊर्जा सुधार मॉडल
राजस्थान के 14 जिलों में यह योजना लागू की जानी थी, लेकिन तकनीकी दिक्कतों, धीमी कार्य गति, कंपनियों की लापरवाही और योजनाओं के क्रियान्वयन में प्रशासनिक शिथिलता ने इस प्रोजेक्ट को गहरी मुश्किल में डाल दिया है। अगर यही हालात रहे तो ऊर्जा सुधार और डिजिटल इंडिया की दिशा में उठाया गया यह बड़ा कदम एक असफल प्रयोग बन सकता है।
राजस्थान की स्मार्ट मीटर योजना फिलहाल दोराहे पर खड़ी है। एक ओर डिजिटल बिलिंग और पारदर्शी ऊर्जा प्रबंधन की ओर बढ़ता भविष्य है, तो दूसरी ओर भ्रष्टाचार, लापरवाही और सिस्टम की जटिलताएं। अब देखना यह होगा कि डिस्कॉम्स कंपनी पर कार्रवाई करके योजना को फिर से रफ्तार दिला पाते हैं या नहीं। यदि नहीं, तो यह एक ऐसा उदाहरण बन जाएगा जहां एक अच्छी योजना खराब क्रियान्वयन की बलि चढ़ गई।