New Delhi, 14 जुलाई . जम्मू-कश्मीर के Chief Minister उमर अब्दुल्ला ने Monday को श्रीनगर के नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान में कब्रों पर फातिहा पढ़ने और फूल चढ़ाने का वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया.
उन्होंने इसके जरिए यह बताने की कोशिश की कि उन्हें यहां पहुंचने से रोकने की कोशिश की गई. उनके साथ हुए ऐसे व्वहार को लेकर तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन, पश्चिम बंगाल की Chief Minister ममता बनर्जी सहित कई विपक्षी नेताओं उनके समर्थन में आए और केंद्र सरकार पर हमला बोला. पश्चिम बंगाल की Chief Minister ममता बनर्जी ने अपने सोशल मीडिया एक्स अकाउंट पर पोस्ट में लिखा, शहीदों की कब्र पर जाने में क्या ग़लत है? यह न सिर्फ दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि एक नागरिक के लोकतांत्रिक अधिकार को भी छीनता है. आज सुबह एक निर्वाचित Chief Minister उमर अब्दुल्ला के साथ जो हुआ वह अस्वीकार्य है, चौंकाने वाला और शर्मनाक है.
ममता के इस पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमीत मालवीय ने एक्स पर लिखा, ममता बनर्जी द्वारा जम्मू-कश्मीर के Chief Minister उमर अब्दुल्ला द्वारा 13 जुलाई को “शहीद दिवस” मनाने के आह्वान का समर्थन करना किसी स्मृति का विषय नहीं है. यह जानबूझकर तुष्टीकरण, ऐतिहासिक विकृतियों और मुस्लिम वोट बैंकों के लिए की गई मनमानी राजनीति का परिणाम है.
13 जुलाई को कश्मीर में पहला संगठित सांप्रदायिक दंगा हुआ- राज्य, उसकी संस्थाओं और सबसे दुखद रूप से, निर्दोष हिंदुओं के खिलाफ एक हिंसक, इस्लामी विद्रोह. यह भारत की अवधारणा पर एक हमला था.
इस दिन की शुरुआत श्रीनगर सेंट्रल जेल के बाहर 7,000 से ज़्यादा इस्लामी कट्टरपंथियों की एक कट्टरपंथी भीड़ के इकट्ठा होने से हुई, जहां एक मुस्लिम अलगाववादी आंदोलनकारी, अब्दुल कादिर पर विद्रोह भड़काने और हिंदुओं की हत्या का आह्वान करने का मुकदमा चल रहा था.
शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के बजाय, भीड़ हिंसक हो गई और “अल्लाह-हू-अकबर” और “इस्लाम ज़िंदाबाद” के नारे लगाते हुए कादिर की रिहाई की मांग करने लगी. जब पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश की, तो उन पर पत्थरों और अस्थायी हथियारों से हमला किया गया. भीड़ ने जेल पर धावा बोल दिया, सरकारी इमारतों में आग लगा दी, पुलिस के उपकरण लूट लिए और आग बुझाने की कोशिश कर रहे दमकल दस्तों पर हमला कर दिया. यह अचानक नहीं हुआ था. यह पूर्वनियोजित था.
अमित मालवीय ने आगे लिखा, जेल में हुई हिंसा के तुरंत बाद, पूरा श्रीनगर शहर अराजकता में डूब गया: महाराजगंज, भूरीकादल, सफाकदल, नवाकदल और अन्य इलाकों में हिंदुओं की दुकानों और घरों को खास तौर पर निशाना बनाया गया. सैकड़ों हिंदुओं के घरों में तोड़फोड़ और लूटपाट की गई. हिंदू महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की गई, उनके कपड़े सार्वजनिक रूप से फाड़े गए. तीन हिंदुओं की बेरहमी से हत्या कर दी गई और 163 अन्य घायल हो गए – सिर्फ़ उनके धर्म के कारण निशाना बनाया गया.
300 दंगाइयों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन सांप्रदायिक नेताओं के दबाव में, 217 को तुरंत रिहा कर दिया गया, जिससे एक स्पष्ट संदेश गया कि धर्म की आड़ में आतंक की कीमत चुकानी पड़ती है. पूरे दंगे को “इस्लाम खतरे में है” के नारे ने हवा दी. ऐसे में इसका असली मकसद इस्लामी प्रभुत्व स्थापित करना, डोगरा हिंदू राजशाही को चुनौती देना और कश्मीर के नाज़ुक सांप्रदायिक संतुलन को बिगाड़ना था. यह घटना घाटी में कट्टरपंथी इस्लामी अलगाववाद का प्रारंभिक बिंदु बन गई – जिसे अब्दुल्ला परिवार, शेख से लेकर उमर तक ने बार-बार “शहादत” के रूप में पेश करने की कोशिश की है.
मालवीय ने आगे लिखा कि अब, ममता बनर्जी इस झूठे आख्यान को वैध ठहराने की कोशिश कर रही हैं, एक ऐसा कृत्य जो कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में 16 अगस्त 1946 को प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस की याद दिलाता है. मुस्लिम लीग के नेता और बंगाल के Chief Minister हुसैन शहीद सुहरावर्दी ने जिन्ना के अलग पाकिस्तान के आह्वान के बाद, सार्वजनिक अवकाश घोषित किया और मुसलमानों से “शक्ति दिखाने” का आग्रह किया. इसके बाद जो हुआ वह कोई विरोध प्रदर्शन नहीं था – यह राज्य द्वारा अनुमोदित नरसंहार था. सशस्त्र मुस्लिम भीड़ मतदाता सूची हाथ में लिए सड़कों पर घूम रही थी, हिंदू घरों की पहचान कर उन पर हमला कर रही थी. गर्भवती महिलाओं के पेट फाड़ दिए गए, उनके अजन्मे बच्चों को आग में फेंक दिया गया. हिंदू पुरुषों के सिर काट दिए गए, उनके सिर कीलों पर लटकाकर परेड कराई गई. 10 साल की छोटी लड़कियों के साथ सार्वजनिक रूप से बलात्कार किया गया, उनके शरीर को पहचान से परे विकृत कर दिया गया. राजाबाजार में, हिंदू महिलाओं की नग्न लाशें उनके बालों से लटकी हुई पाई गईं, उनके अंग किसी बूचड़खाने में लाशों की तरह कटे हुए थे. मंदिरों को अपवित्र किया गया, मूर्तियों को तोड़ा गया. मस्जिदें हथियारों के भंडार बन गईं, लाउडस्पीकरों से “काफिरों की धरती को साफ़ करो” के नारे गूंजने लगे.
अमित मालवीय ने लिखा कि केवल 72 घंटों में 5,000 से ज़्यादा हिंदुओं का कत्लेआम कर दिया गया. हज़ारों लोग विस्थापित हुए. यहां तक कि ब्रिटिश अधिकारियों ने भी स्वीकार किया कि, “मुस्लिम लीग ने बंगाल के आधुनिक इतिहास में सबसे क्रूर नरसंहार का नेतृत्व किया.”
और अब ममता बनर्जी, जो आज की सुहरावर्दी हैं, उसी विचारधारा के साथ खड़ी होने की हिम्मत कैसे कर रही हैं? उमर अब्दुल्ला के आह्वान का उनका समर्थन स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान के बारे में नहीं है. यह इस्लामी हिंसा को छिपाने, अलगाववाद से खिलवाड़ करने और वोट बैंक के लिए खेलने के बारे में है-भले ही इसका मतलब ऐतिहासिक ज़ख्मों को कुरेदना ही क्यों न हो. अब, वह बंगाल पर भी ऐसा ही सभ्यतागत आतंक फैलाना चाहती हैं. मालदा से लेकर मुर्शिदाबाद, बशीरहाट, देगांगा, इटाहार, हावड़ा तक- टीएमसी नेता, पार्षद, विधायक और सांसद जनसांख्यिकीय परिवर्तन लाने के लिए सक्रिय रूप से हिंसा और धमकी को बढ़ावा दे रहे हैं और फैला रहे हैं. लेकिन इतिहास याद रखता है. और भारत भी याद रखेगा.
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जीकेटी/
The post उमर अब्दुल्ला के समर्थन में उतरी ममता, तो अमित मालवीय ने दिया जवाब, पश्चिम बंगाल की सीएम को बताया ‘सुहरावर्दी’ first appeared on indias news.
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