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मुंबई ट्रेन विस्फोट : सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई रोक, आरोपियों की जेल से रिहाई पर कोई असर नहीं, हुआ स्वागत

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Mumbai , 24 जुलाई . Supreme court ने Mumbai ट्रेन विस्फोटों के सिलसिले में 12 आरोपियों को बरी करने से जुड़े बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई है. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इस आदेश का जेल से रिहा होने वाले आरोपियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा. इस पर आरोपियों ने Supreme court के फैसले का स्‍वागत किया.

आरोपियों में से एक वाहिद शेख ने कहा कि Supreme court में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार की तरफ से याचिका दायर करने पर डर था कि कहीं वापस जेल न जाना पडे़.

आरोपी वाहिद शेख ने से बातचीत के दौरान कहा कि रिहाई और हाईकोर्ट के फैसले के दिन से हम सभी आरोपी खुश थे, सभी रिहा हो गए थे और हम अपने परिवारों से मिल गए थे. लेकिन, सरकार हमारी खुशी को एक दिन भी बर्दाश्त नहीं कर सकी. उन्होंने तुरंत Supreme court का रुख किया. जब से उन्होंने Supreme court में याचिका दायर की, हमारे मन में बहुत तनाव था, हमें नहीं पता था कि क्या होगा. क्या हमें वापस जेल जाना पड़ेगा? क्या हमें फिर से गिरफ्तार किया जाएगा? इस घटना के तमाम आरोपी लगातार मेरे संपर्क में थे और मैं उन्हें आश्वस्त करता रहा. Supreme court के द्वारा जो फैसला आया है उससे अभी आरोपियों को जेल नहीं जाना पड़ेगा. इस दौरान अगर Supreme court कहता कि आरोपियों को गिरफ्तार कर लो तो यह आश्‍चर्यजनक होता. बेगुनाह होते हुए 19 साल जेल में रहने के बाद अब आगे की कानूनी लड़ाई कितने साल चलेगी, इसको कोई नहीं बता सकता. यह बहुत दुखद है कि पुलिस ने इतने साल तक बेगुनाहों को जेल में रखा था.

आरोपी तनवीर अहमद ने कहा कि पहले दिन से ही हम सबको न्‍याय मिलने की उम्‍मीद थी. हाईकोर्ट ने साक्ष्‍य के अभाव में आरोपियों को बरी किया है. कोई भी हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दे सकता है. Supreme court में केस जाने का मतलब है कि आज भी इंसाफ कायम है. हमको यकीन है कि Supreme court साक्ष्‍यों को स्‍वीकार करेगा. आतंक से पीड़ित लोगों को न्‍याय मिलना चाहिए.

वहीं, एक अन्‍य आरोपी सुहैल महमूद शेख कहते हैं कि एक प्रक्रिया होती है, जिसमें दोनों पक्ष अपनी बात रखते हैं और अदालत दोनों को राहत देती है. यह एटीएस के झूठ की जीत नहीं है. उन्हें बस अस्थायी राहत दी गई है, बाद में सुनवाई का मौका दिया गया है, यह कोई सफलता नहीं है. सिर्फ इसलिए कि हाई कोर्ट के फैसले पर स्टे मिल गया है, इसका मतलब यह नहीं कि वे सही साबित हो गए हैं. लगभग दो दशक का अंतराल हो गया है, जब मैं जेल गया था, तब मैं युवा था, अब मैं बूढ़ा हो गया हूं. मेरे बच्‍चे बड़े हो गए हैं. हमें लेकर लोगों के मन में नकारात्‍मक सवाल खड़े होते हैं, लेकिन हाई कोर्ट के फैसले ने लोगों के सोचने का तरीका बदल दिया है. लोगों के बर्ताव में बदलाव हुआ है.

एएसएच/जीकेटी

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