New Delhi, 4 नवंबर . आईआईटी (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने कुछ छुपे हुए ब्लड मार्कर्स की पहचान की है जो मधुमेह के खतरे से आगाह करते हैं.
साल 2023 में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने एक स्टडी की जिसके मुताबिक India में मधुमेह पीड़ितों की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है. रिपोर्ट के मुताबिक India में 10.1 करोड़ लोग मधुमेह से जूझ रहे हैं और तकरीबन 1.36 करोड़ प्री-डायबिटिक हैं.
वर्तमान में अगर आपको मधुमेह का पता लगाना है तो कुछ आम से परीक्षण हैं, जैसे फास्टिंग ब्लड ग्लूकोज और एचबीए1सी. लेकिन इन टेस्ट्स की कुछ सीमाएं हैं. ये जटिल बायोकेमिकल गड़बड़ियों का सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा ही पकड़ पाते हैं और ज्यादातर अनुमान नहीं लगा पाते कि किसे सबसे ज्यादा खतरा है.
आईआईटी बॉम्बे ने कुछ मेटाबॉलिक्स (रक्त में मौजूद छोटे मॉलिक्यूल्स) का अध्ययन किया. इसके बायोकेमिकल पैटर्न खोज निकालने की कोशिश की जिसके आधार पर डायबिटिक्स की पहचान करने में मदद मिल सके.
मेटाबोलाइट्स शरीर में मौजूद छोटे मॉलिक्यूल्स होते हैं जो कोशिकाओं में चल रही गतिविधि को दर्शाते हैं. इनके विश्लेषण से शरीर में होने वाले छोटे-मोटे बदलावों का पता लगाया जा सकता है. ये ऐसे बदलाव होते हैं जो क्लिनिकल (नैदानिक) लक्षणों से पहले शुरू होते हैं.
आईआईटी बी से पीएचडी कर रही शोधकर्ता स्नेहा राणा ने कहा, “टाइप 2 डायबिटीज सिर्फ हाई ब्लड शुगर के बारे में नहीं है. यह शरीर में अमीनो एसिड, फैट और दूसरे पाथवे को भी बाधित करता है. स्टैंडर्ड टेस्ट अक्सर इस छिपी हुई गतिविधि को पकड़ नहीं पाते. ये ऐसे लक्षण होते हैं जो पकड़ में आने से काफी साल पहले शरीर में शुरू हो जाते हैं.”
जर्नल ऑफ प्रोटीओम रिसर्च में पब्लिश इस स्टडी के लिए, टीम ने जून 2021 और जुलाई 2022 के बीच हैदराबाद के उस्मानिया जनरल हॉस्पिटल में 52 वॉलंटियर्स का रक्त सैंपल लिया.
इनमें 15 स्वस्थ, टाइप 2 डायबिटीज वाले 23 मरीज और डायबिटिक किडनी रोग (डीकेडी) वाले 14 मरीज शामिल थे. शोधकर्ताओं ने लिक्विड क्रोमैटोग्राफी-मास स्पेक्ट्रो मेट्री (एलसी-एमएस) और गैस क्रोमैटोग्राफी-मास स्पेक्ट्रो मेट्री (जीसी-एमएस) नामक दो पूरक तकनीकों का उपयोग करते हुए लगभग 300 मेटाबोलाइट्स के लिए नमूनों का परीक्षण किया.
इस दौरान उन्होंने 26 ऐसे मेटाबोलाइट्स पाए जो डायबिटिक मरीजों और स्वस्थ लोगों के बीच अलग थे.
ग्लूकोज, कोलेस्ट्रॉल और 1,5-एनहाइड्रोग्लूकिटोल (ब्लड शुगर का एक शॉर्ट-टर्म मार्कर) में से कुछ तो उम्मीद के मुताबिक थे, लेकिन अन्य, जैसे वैलेरोबेटाइन, राइबोथाइमिडीन और फ्रुक्टोसिल-पाइरोग्लूटामेट, का डायबिटीज से कोई संबंध नहीं था.
यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर प्रमोद वांगिकर ने कहा, “यह बताता है कि डायबिटीज सिर्फ ग्लूकोज डिसरेगुलेशन (ऐसी स्थिति जब रक्त शर्करा स्तर लेवल को नियंत्रित नहीं कर पाती है) नहीं है; यह उससे बढ़करचयापचय विकार (मेटाबॉलिक डिसऑर्डर) है.”
टीम ने पाया कि बायोकेमिकल पैटर्न किडनी की जटिलताओं के खतरे वाले डायबिटिक्स की पहचान करने में भी मदद कर सकते हैं.
वहीं किडनी संबंधी विकारों से जूझ रहे मरीजों की तुलना दूसरे समूह से करने पर, टीम ने सात ऐसे मेटाबोलाइट्स की पहचान की जो स्वस्थ लोगों से लेकर डायबिटिक किडनी रोग वाले मरीजों तक लगातार बढ़ते गए. इनमें अरबिटोल और मायो-इनोसिटोल जैसे शुगर अल्कोहल, साथ ही राइबोथाइमिडीन और 2पीवाई नाम का एक टॉक्सिन जैसा कंपाउंड शामिल था. 2पीवाई ऐसा कंपाउंड है जो किडनी खराब होने की स्थिति में जमा हो जाता है.
–
केआर/
You may also like

स्कैमर्स के लिए APK लिंक बना 'अलादीन का चिराग', जान लीजिए यह फाइल कैसे करती है काम

Tata Power Project: टाटा को मिलेगी 110000000000 रुपये से पावर, कंपनी इस शहर में शुरू करेगी बड़ा प्रोजेक्ट, क्या है प्लान?

White Discharge Causes : व्हाइट डिस्चार्ज को न करें अनदेखा, समय रहते अपनाएं ये ज़रूरी कदम

America: ट्रंप की धमकी के बाद भी न्यूयॉर्क सिटी मेयर का चुनाव जीत गए जोहरान ममदानी, ट्रंप को झटका

Vastu For Plants : घर में रखें ये पौधे, वास्तु के अनुसार बढ़ेगी समृद्धि और शांति




