बीजिंग, 12 जुलाई . 7 जुलाई, 2025 को खत्म हुआ ब्रिक्स का सत्रहवां शिखर सम्मेलन ऐसे समय में आयोजित हुआ है, जब यह संगठन वैश्विक सुर्खियों में है.
ब्रिक्स की यह पहली ऐसी बैठक रही, जिसमें सभी नए सदस्य मसलन मिस्र, इथियोपिया, यूएई, ईरान और इंडोनेशिया शामिल हुए हैं. वैसे तो सऊदी अरब अभी तक इस संगठन में औपचारिक रूप से शामिल नहीं हुआ है, फिर भी उसकी इस बार के शिखर सम्मेलन में उपस्थिति रही.
वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के लिए अगले चुनौती के रूप में देखा जा रहा ब्रिक्स समूह, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निशाने पर है, क्योंकि वह इसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में डॉलर के विकल्प के रूप में देख रहे हैं.
ब्रिक्स समूह की कई अपनी आंतरिक चुनौतियां भी हैं. इसका असर अप्रैल में दिखा, जब ब्रिक्स विदेश मंत्रियों की बैठक बिना किसी संयुक्त बयान के समाप्त हो गई थी. मार्च में भारत ने जब यह स्पष्ट किया कि वह किसी भी रूप में ब्रिक्स के आपसी कारोबार से डॉलर को हटाने पर विचार नहीं कर रहा है.
ट्रंप लगातार धमकी दे रहे हैं कि ब्रिक्स के “अमेरिका-विरोधी रुख” के कारण ब्रिक्स देशों पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा. इससे ब्रिक्स में उहापोह भी है. ऐसे मसले पर ब्रिक्स से उम्मीद की जा रही है कि वह और तेजी से एकमत से इस टैरिफ युद्ध के खिलाफ सामने आएगा. हालांकि, भारत की दुविधा यह है कि वह अमेरिका से टैरिफ को लेकर जो बातचीत कर रहा है, वह अंतिम दौर में है.
तमाम चुनौतियों के बावजूद, रियो घोषणापत्र ने ब्रिक्स सदस्यों के बीच कई मुद्दों पर बुनियादी एकजुटता और आम सहमति को रेखांकित किया है. ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के संयुक्त वक्तव्य में, गाजा पर हमलों और परमाणु सुरक्षा के खतरे को देखते हुए भी ईरान पर हमलों की कड़ी निंदा की गई.
भारत और ब्राजील वैश्विक मंच पर बड़ी भूमिका निभाएंगे. ग्लोबल साउथ के देशों के लिए साझा दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए इस शिखर सम्मेलन में अधिक मौके देने पर सहमति नजर आई.
इसमें ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और विश्व व्यापार संगठन को पुनर्व्यवस्थित करने पर कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव शामिल किए गए. रियो घोषणापत्र की बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है, अमेरिकी टैरिफ युद्ध के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया जाना.
(साभार- चाइन मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
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एबीएम/
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