नई दिल्ली, 24 अप्रैल . जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 और 35ए की समाप्ति के बाद अब धीरे-धीरे घाटी अपने खुशनुमा रंग में लौट ही रही थी. लेकिन, पाकिस्तान में बैठे नापाक इरादे वाले लोगों को यह कहां बर्दाश्त होने वाला था.
पाक अधिकृत कश्मीर के पीएम की जुबानी तो इस तरह के कायराना हमले की चेतावनी पहले ही दी जा चुकी थी. फिर वहां से एक और आवाज पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष सैयद असीम मुनीर अहमद शाह की उठी, जिसने ‘टू नेशन थ्योरी’ और पाकिस्तान के गठन की बुनियाद और सोच की पूरी कहानी से लोगों को रू-ब-रू करा दिया.
इसके बाद कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को जो हुआ, वह पाकिस्तान की सरजमीं पर पल रहे आतंकियों और पाक सेना के जवानों की बुजदिली थी और कुछ नहीं.
22 अप्रैल 2025 की दोपहर तक तो कश्मीर में सब कुछ सामान्य था. यहां बड़ी संख्या में घूमने आए सैलानी पहलगाम में थे. बड़ी संख्या में पर्यटक कश्मीर आ रहे थे और उनके साथ वहां के स्थानीय लोगों का व्यवहार भी काफी अच्छा था. ये वही कश्मीर था, जहां जी-20 सम्मेलन आयोजित किया गया था.
लेकिन, 22 अप्रैल 2025 को दोपहर के बाद पहलगाम में हुआ आतंकी हमला निर्दोष नागरिकों को टारगेट कर हुआ, जिसमें पूरे भारत से आए पर्यटकों को जानबूझकर निशाना बनाया गया था.
पहलगाम आतंकी हमले ने इसके पैमाने नहीं, बल्कि इसकी बर्बरता की वजह से देश के लोगों को झकझोर कर रख दिया. आतंकी हमले के दौरान जो लोग बच गए, उन्होंने अपनी जुबानी बताया कि कैसे खुशियों से भरी घाटी को आतंकियों ने कुछ ही पलों में मौत का जमघट बना दिया. कैसे हथियारों से लैस आतंकियों ने लोगों से उनका नाम और धर्म पूछा और इस पहचान के आधार पर उन्हें अलग कर दिया.
इसके बाद उन्होंने हिंदुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाया और इन आतंकियों ने बर्बरतापूर्वक हिंदुओं के सिर में गोली मार दी. एक पीड़ित महिला ने तो बताया कि उनके पति को केवल इसलिए सिर में गोली मार दी क्योंकि उनसे पूछा गया कि तुम हिंदू हो या मुसलमान और उनके पति ने कहा, हिंदू.
आतंकी खौफ का ऐसा मंजर पैदा करना चाहते थे कि उन्हें भारतीय सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस का भी खौफ नहीं था. वह काफी देर तक इस भीड़ पर क्रूरता से गोलियां चलाते रहे.
यहां निहत्थे पर्यटकों पर गोलियां बरसाने का आतंकियों का उद्देश्य केवल लोगों को मारना नहीं बल्कि देश के लोगों के आत्मविश्वास को तोड़ना, इस हमले को वैश्विक सुर्खियां बनाना और भारत के लोगों में भय का माहौल पैदा करना था.
ऐसा करके पाकिस्तान की सेना ने एक बार फिर दुनिया को याद दिलाया कि वह आतंकवाद को कमजोरी के कारण नहीं, बल्कि जानबूझकर ‘विदेश नीति के औजार’ के रूप में इस्तेमाल कर रही है.
यह कोई आकस्मिक हिंसा नहीं थी. यह जातीय और वैचारिक निशाना बनाने की कार्रवाई थी, यह याद दिलाता है कि कश्मीर में आतंकवाद सिर्फ राजनीतिक नहीं है, बल्कि पाकिस्तान की तरफ से पाले जा रहे आतंकी ऐसे हमलों की मूल जड़ हैं. यानी पाकिस्तान इस तरह के कायराना आतंकी हमलों को प्रायोजित करता है.
यह घटना तब हुई जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत की यात्रा पर थे. यह वैसी ही घटना थी, जो मार्च 2000 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत की राजकीय यात्रा की पूर्व संध्या पर बुजदिल आतंकियों ने चित्तिसिंहपुरा में की थी, जिसमें आतंकवादियों ने 36 स्थानीय सिखों की हत्या कर दी थी.
फरवरी 1999 में, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर गए थे, तो राजौरी में दो और उधमपुर में एक हमले में 20 हिंदू मारे गए थे. यह वाजपेयी की लाहौर यात्रा के शांति के उद्देश्य को झटका देने के लिए किया गया था.
घाटी में लगातार पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी गतिविधियों के कारण यहां शांति स्थापित करने में कठिनाई आती रही है. हालांकि, पिछले कुछ सालों में पाकिस्तानी आतंकवादियों का बड़े पैमाने पर सफाया किया गया है और लगभग 10 प्रतिशत आतंकवादी अभी भी बचे हुए हैं, जिनको खत्म करने की कोशिश की जा रही है. इससे बौखलाए पाकिस्तान ने इस क्षेत्र में अधिकतम हिंसा फैलाने के अपने प्रयासों को तेज कर दिया है.
23 अप्रैल, बुधवार को पूरे कश्मीर में पहलगाम आतंकी हमले के विरोध में प्रदर्शन हुए. कश्मीर के सभी लोगों ने एक स्वर में हिंसा और खून-खराबे की निंदा की.
16 अप्रैल 2025 (बुधवार) को ओवरसीज पाकिस्तानी कन्वेंशन को संबोधित करते हुए पाक सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने कश्मीर को लेकर जो कहा था, वह केवल और केवल भुखमरी की शिकार पाकिस्तान की आवाम को शहद चटाने के लिए किया गया था. क्योंकि पाकिस्तान के हुक्मरान और सेना के अधिकारी जानते हैं कि पाकिस्तान की आवाम जिस हालत से गुजर रही है. अगर उसका ध्यान भटकाना है तो जम्मू-कश्मीर के नैरेटिव को जिंदा रखना होगा. यही वजह रही कि पाकिस्तानी सेना के इशारे पर यह कायराना हरकत घाटी में आतंकियों ने की.
घाटी में 2019 में आर्टिकल-370 के खात्मे के बाद उभरे एक सशस्त्र समूह द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने इस कायराना हरकत की जिम्मेदारी ली है. यहां के बारे में जो इनपुट हैं, उसके मुताबिक दो समूह में छह आतंकवादी थे. उनमें से दो स्थानीय कश्मीरी थे और बाकी विदेशी आतंकवादी. ये दोनों कश्मीरी आतंक की ट्रेनिंग के लिए 2017 में पाकिस्तान गए थे, वहां सात साल तक प्रशिक्षण लेने के बाद उन्होंने कश्मीर में घुसपैठ की.
लश्कर और जैश दोनों ने इन आतंकवादियों को भेजा था. जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों को विभाजित करने वाली पीर पंजाल रेंज में इस तरह के उच्च प्रशिक्षित आतंकवादी अभी और भी हैं. सूचना की मानें तो वर्तमान में, घाटी में लगभग 60 सक्रिय विदेशी आतंकवादी हैं, उनमें से 35 लश्कर और उसके सहयोगी टीआरएफ से हैं और 25 जैश के अलावा अन्य समूहों से हैं.
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जीकेटी/
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