New Delhi, 14 अक्टूबर . दुनिया आज एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है, 90 से अधिक देश, 56 से अधिक सक्रिय संघर्षों में लिप्त हैं. 90 से अधिक देशों की इन संघर्षों में भागीदारी ने वैश्विक व्यवस्था को जटिल बना दिया है. यह जानकारी Tuesday को भारतीय थलसेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने दी.
वह New Delhi में आयोजित संयुक्त राष्ट्र शांति सेना योगदानकर्ता देशों के प्रमुखों के सम्मेलन में बोल रहे थे. यहां जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने वैश्विक शांति के प्रति India की अटूट प्रतिबद्धता को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि नई प्रौद्योगिकियां, हाइब्रिड युद्ध, गैर-राज्यीय तत्वों की भूमिका और दुष्प्रचार जैसे कारक पारंपरिक युद्ध और शांति के बीच की रेखाओं को धुंधला कर रहे हैं.
विश्व शांति में India के सहयोग व प्रतिबद्धता की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि India अब तक 51 संयुक्त राष्ट्र मिशनों में लगभग 3 लाख सैनिकों (पुरुष और महिलाएं) भेज चुका है. जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने बताया कि यह कुल 71 मिशनों में से सबसे अधिक है. उन्होंने बताया कि कोरिया (1950) और कांगो (1960) से लेकर आज 11 में से 9 चल रहे मिशनों में India की सक्रिय उपस्थिति है. उन्होंने कहा कि India न केवल सैनिक भेजने वाला देश है, बल्कि अनुभव साझा करने में भी अग्रणी है. New Delhi स्थित संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना केंद्र को राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र के रूप में विकसित किया गया है, जहां अनेक देशों के अधिकारी प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं.
उन्होंने कहा, “India में इस सम्मेलन का आयोजन, India की उस भावना का प्रतीक है जिसे हम वसुधैव कुटुम्बकम् और विश्व बंधु के रूप में मानते हैं. विश्व एक परिवार है और India सबका मित्र.” शांति स्थापना के बदलते स्वरूप पर दृष्टि डालते हुए थल सेना प्रमुख ने वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि आज शांति स्थापना अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना कर रही है. उन्होंने कहा कि आज का शांति सैनिक केवल सुरक्षा प्रदाता नहीं है, बल्कि राजनयिक, तकनीकी विशेषज्ञ, समाज निर्माता और कभी-कभी संघर्ष क्षेत्रों में सूचना का एकमात्र माध्यम भी बन जाता है.
उन्होंने ब्लू हेलमेट्स पहनने वाले शांति सैनिकों के लिए कहा, “ब्लू हेलमेट्स वास्तव में वह ‘गोंद’ हैं जो मिशन को एकजुट रखती है.” जनरल द्विवेदी ने कहा कि भविष्य के शांति अभियानों के लिए हमें नवोन्मेषी सोच और व्यावहारिक अनुकूलन की आवश्यकता है. उन्होंने कुछ प्रमुख बिंदु रखे. सेना प्रमुख ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र मिशनों के लिए धन की कमी को ध्यान में रखते हुए अब कम सैनिकों और अधिक तकनीकी सहयोग के साथ मिशन संचालित करने होंगे. शांति स्थापना अब केवल सशस्त्र उपस्थिति तक सीमित न रहकर, निवारक कूटनीति और दीर्घकालिक शांति निर्माण की दिशा में आगे बढ़नी चाहिए.
उन्होंने पश्चिम अफ्रीकी कहावत उद्धृत की, “धीरे बोलो और बड़ा डंडा साथ रखो, तुम दूर तक जाओगे.” सेनाध्यक्ष ने कहा कि कुछ मिशन जिनकी जटिलता बढ़ गई है, उनके लिए सीमित अवधि हेतु दोनों अध्यायों के बीच इंटरचेंजएबिलिटी (लचीलापन) की आवश्यकता है. संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के यू1 से यू9 कार्यालयों के कार्यों का सुधार, पारदर्शिता और उत्तरदायित्व बढ़ाना आवश्यक है. उन्होंने बल दिया कि आधुनिक तकनीक, तीव्र तैनाती क्षमता और आपसी इंटरऑपरेबिलिटी (संगतता) को बढ़ाना अब समय की मांग है. उन्होंने कहा, “संयुक्त प्रशिक्षण, संसाधनों का बुद्धिमान उपयोग और साझी योजना ही शांति अभियानों को दीर्घकालिक स्थायित्व प्रदान कर सकते हैं.”
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जीसीबी/डीएससी
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