सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के दोषी कैथोलिक पादरी की सजा को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है। यह निर्णय मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने सुनाया। मामला फादर एडविन पिगारेज़ बनाम केरल राज्य से जुड़ा है, जिसमें आपराधिक अपील संख्या 1321/2016 और 160/2017 दर्ज है।
मामले की पृष्ठभूमि
फादर एडविन पिगारेज़ पर एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार का आरोप सिद्ध हुआ था, जिसके बाद उन्हें दोषी ठहराते हुए निचली अदालत ने सजा सुनाई थी। केरल हाईकोर्ट ने भी सजा को बरकरार रखा था। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान उनकी सजा पर रोक लगा दी है।
यह आदेश अस्थायी है और पूरी अपील पर अंतिम निर्णय आने तक लागू रहेगा। कोर्ट ने अभी दोषी को पूरी तरह से बरी नहीं किया है, बल्कि उसकी सजा को स्थगित किया है ताकि अपील की गहन समीक्षा की जा सके।
फैसले पर उठे सवाल
इस फैसले के बाद सोशल मीडिया और नागरिक समाज में आलोचना देखने को मिल रही है। कई लोगों ने सवाल उठाए हैं कि जब दोष पहले ही सिद्ध हो चुका है, तो फिर सजा पर रोक क्यों लगाई गई? कुछ लोगों का मानना है कि इस तरह के फैसले पीड़ितों के न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं।
फैसले को लेकर चर्च की भूमिका पर भी आलोचनाएं हो रही हैं। कुछ आलोचकों ने यह भी कहा है कि “चर्च के प्रभावशाली तत्व हर जगह फैले हुए हैं”, और यह घटना न्याय प्रणाली में हस्तक्षेप का एक उदाहरण हो सकती है।
नेपाल आंदोलन से तुलना
कुछ प्रतिक्रियाओं में इस घटना की तुलना नेपाल के उस आंदोलन से की जा रही है, जब वहां की जनता ने संस्थानों में विदेशी प्रभाव और धर्म आधारित सत्ता संरचनाओं के खिलाफ विरोध जताया था। हालांकि भारत की संवैधानिक व्यवस्था में धर्मनिरपेक्षता को सर्वोच्च स्थान दिया गया है, फिर भी इस तरह की घटनाएं चिंता का विषय बनती जा रही हैं।
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