जयपुर। 9 जुलाई को, जयपुर के बहाई समुदाय ने दिव्यात्मा बाब के शहीदी दिवस को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया। इस अवसर पर एक रक्तदान अभियान का आयोजन किया गया, जिसमें कई बहाई पुरुष और महिलाएं, विशेषकर युवा, ने रक्तदान कर दिव्यात्मा बाब के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की और उन लोगों की मदद की जिन्हें रक्त की आवश्यकता थी। इस शिविर में कुल 25 यूनिट रक्त एकत्र किया गया।
इस दिन बच्चों और युवाओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों, गीतों, भजनों और नृत्य के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। प्रार्थनाएं की गईं और बाब द्वारा प्रकट किए गए पवित्र श्लोकों का पाठ किया गया। स्थानीय आध्यात्मिक सभा के अध्यक्ष नेजात हगीगत और वियाज आलम अनंत ने दिव्यात्मा बाब के जीवन पर प्रकाश डालते हुए व्याख्यान दिया, जिससे उपस्थित लोगों को त्याग की प्रेरणा मिली।
स्थानीय आध्यात्मिक सभा के सचिव अनुज अनन्त ने बताया कि दिव्यात्मा बाब का जन्म 1819 में शीराज (ईरान) में हुआ था। उन्होंने बहाउल्लाह (1817-1892) के लिए 'द्वार' बनने की घोषणा की। 'बाब' का अर्थ 'द्वार' होता है। बहाई धर्म में दिव्यात्मा बाब और बहाउल्लाह को 'युगल अवतार' कहा जाता है, जो विश्व में शांति, प्रेम और एकता लाने के लिए आए। बाब की बढ़ती लोकप्रियता के कारण रूढ़िवादी धर्मगुरुओं ने उनका विरोध किया और उनके अनुयायियों को यातनाएं दीं। बाब को 9 जुलाई 1850 को मात्र 31 वर्ष की आयु में शहीद कर दिया गया। इसके बावजूद, उन्होंने जिस धर्म की स्थापना की, वह आज बहाई धर्म के रूप में विश्वभर में फैला हुआ है। भारत में बहाइयों की सबसे बड़ी संख्या है, जहां नई दिल्ली का 'कमल मंदिर' इस समुदाय का एक प्रमुख आराधना स्थल है। दिव्यात्मा बाब ने 'स्त्री-पुरुष की समानता' की घोषणा की थी और उनके पहले अनुयायियों में एक प्रसिद्ध कवयित्री 'ताहिरा' भी थीं।
दिव्यात्मा बाब की समाधि हाइफा (इज़राइल) में है, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु उनके जीवन से प्रेरणा लेने और प्रार्थनाएं अर्पित करने आते हैं।
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