-डॉ. मयंक चतुर्वेदी
भारत और रूस के बीच संबंधों की मजबूती और स्थायित्व किसी एक दौर या राजनीतिक शासन की देन नहीं है, यह दशकों की रणनीतिक समझ, परस्पर भरोसे और साझा हितों का परिणाम है। दोनों देशों के बीच रक्षा, ऊर्जा, अंतरिक्ष, तकनीक और वैश्विक राजनीति के क्षेत्रों में सहयोग का इतिहास गहरा है। यही कारण है कि जब कुछ दिन पहले यह खबर फैली कि रूस पाकिस्तान को जेएफ-17 थंडर ब्लॉक-III लड़ाकू विमानों के लिए आरडी-93एमए इंजन सप्लाई कर रहा है, तो देश की विपक्षी कांग्रेस ने इसे लेकर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोल दिया। जल्द ही रूस ने स्वयं इन खबरों का खंडन कर दिया और साफ कहा कि भारत को नुकसान पहुंचाने वाला कोई समझौता नहीं किया जा रहा है। इससे एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस बिना तथ्यों की जांच के, केवल राजनीतिक लाभ के लिए राष्ट्रहित से जुड़ी बातों पर भी भ्रम फैलाने से नहीं चूकती।
रूसी कूटनीति विशेषज्ञों ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पाकिस्तान को आरडी-93एमए इंजन सप्लाई करने की खबरें सही नहीं हैं। रूस और पाकिस्तान के संबंध इतने गहरे नहीं हैं कि भारत को असहजता महसूस हो। यह भी इशारा किया कि कुछ ताकतें भारत और रूस के सहयोग को नुकसान पहुँचाने की कोशिश कर रही हैं, खासकर उन उच्च स्तरीय बैठकों से ठीक पहले, जिनमें दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण रक्षा और ऊर्जा समझौतों पर चर्चा होने वाली है। यह बयान उस समय आया है जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दिसंबर में भारत की यात्रा पर आने वाले हैं। इस दौरे से पहले फैलाई गई यह अफवाह दरअसल भारत की कूटनीति को कमजोर दिखाने का प्रयास था।
रूस का यह बयान इस बात का प्रमाण है कि भारत और रूस के बीच रणनीतिक भरोसा अब भी उतना ही मजबूत है जितना कि सोवियत काल में था। भारत ने हमेशा रूस के साथ अपने संबंधों को किसी तीसरे देश के दृष्टिकोण से नहीं देखा है, और रूस ने भी यही नीति अपनाई है। यही वजह है कि रूस का यह खंडन उन राजनीतिक शक्तियों के लिए करारा जवाब है जो विदेश नीति जैसे गंभीर विषयों को भी सस्ती राजनीति का मैदान बना रही हैं।
रूस द्वारा इस कथित डील को खारिज करने से पहले कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स पोस्ट में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कूटनीति को “असफल” बताया था। उन्होंने यह प्रश्न उठाया कि आखिर भारत का “सबसे भरोसेमंद मित्र” अब पाकिस्तान के पक्ष में क्यों खड़ा हो रहा है? कांग्रेस पार्टी ने अपने बयान में कहा कि मोदी की विदेश नीति “छवि निर्माण” और “वैश्विक दिखावे” पर केंद्रित है, लेकिन सवाल यह है कि यदि यही कूटनीति इतनी कमजोर होती, तो क्या रूस जैसा रणनीतिक साझेदार भारत के साथ दशकों पुराने भरोसे को कायम रखता?
कांग्रेस की समस्या यह है कि वह विदेश नीति को भी घरेलू राजनीति के चश्मे से देखती है। जिस समय देश को एकजुट रहकर अमेरिका के टैरिफ और पश्चिमी दबाव का सामना करना चाहिए, उस समय कांग्रेस झूठी खबरों को मुद्दा बनाकर देश की कूटनीति को कमजोर करने में लगी रहती है। इससे विदेशी मीडिया और प्रतिद्वंद्वी देश भी यही संदेश लेते हैं कि भारत का विपक्ष स्वयं अपनी सरकार की नीतियों पर भरोसा नहीं करता।दरअसल, कांग्रेस का यह रवैया कोई नई बात नहीं है। बीते कुछ वर्षों में पार्टी ने कई ऐसे अवसरों पर केंद्र सरकार की विदेश नीति को लेकर भ्रम फैलाने की कोशिश की है। चाहे वह राफेल डील का मामला हो, बांग्लादेश की नीति पर टिप्पणी हो, या अब रूस के साथ संबंधों को लेकर उठाया गया ये विवाद, हर बार कांग्रेस ने बिना ठोस तथ्य के सवाल उठाए हैं।यह प्रश्न अब उठना स्वाभाविक है कि आखिर कांग्रेस बार-बार ऐसे झूठे नैरेटिव क्यों गढ़ती है, जिनसे देश की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुकसान पहुँच सकता है? क्या विपक्ष का दायित्व केवल सरकार को नीचा दिखाना है या फिर वह राष्ट्रीय हितों की रक्षा में भी अपनी भूमिका निभाने को तैयार है?पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी के बीच व्यक्तिगत संबंधों की मजबूती आज किसी से छिपी नहीं है। हाल ही में रूस में आयोजित वाल्दाई सम्मेलन में पुतिन ने कहा था, “मुझे प्रधानमंत्री मोदी के साथ बातचीत में हमेशा विश्वास और सहजता महसूस होती है। भारत कभी किसी के दबाव में झुकेगा नहीं।” यह बयान किसी औपचारिक कूटनीतिक वक्तव्य से अधिक, उस निजी भरोसे का प्रतीक है जो दोनों देशों के नेतृत्व के बीच दशकों में विकसित हुआ है।रूस और भारत के बीच रक्षा सहयोग आज भी अभूतपूर्व स्तर पर है। ब्रह्मोस मिसाइल परियोजना, सुखोई-30 विमानों का संयुक्त निर्माण, एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम, और हाल ही में ऊर्जा क्षेत्र में संयुक्त निवेश, ये सभी भारत-रूस संबंधों की गहराई को दर्शाते हैं। ऐसे में कांग्रेस द्वारा अचानक “रूस अब पाकिस्तान के पक्ष में है” जैसा आरोप लगाना न केवल राजनीतिक रूप से अपरिपक्वता है, बल्कि यह भारत की रणनीतिक विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।
इस पूरे विवाद के बीच एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अमेरिका ने रूस से कच्चा तेल खरीदने पर भारत पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया है। पहले से ही भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ का बोझ है, और अब यह और बढ़ा है। लेकिन भारत ने अमेरिकी दबाव के आगे झुकने से इनकार कर दिया। पुतिन ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि “भारत को अमेरिका के पेनल्टी टैरिफ से जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई रूस से तेल आयात के जरिए हो जाएगी।” यह वक्तव्य इस बात का संकेत है कि रूस भारत के आर्थिक हितों के साथ खड़ा है। जब पश्चिमी देश रूस पर प्रतिबंध लगा रहे हैं, तब भारत ने संतुलन बनाए रखा है, न तो रूस से दूरी बनाई, न ही पश्चिम से टकराव लिया। यह वही “रणनीतिक स्वायतता” है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति की सबसे बड़ी उपलब्धि माना जाता है।
रूस की भूमिका और पाकिस्तान के साथ सीमित संबंधरूस और पाकिस्तान के संबंध बीते कुछ वर्षों में कुछ हद तक बढ़े जरूर हैं, लेकिन यह भारत की सुरक्षा के लिए खतरा नहीं बने हैं। पाकिस्तान के साथ रूस की सैन्य सहभागिता अब भी सीमित और सतही है। रूस की प्राथमिकता भारत ही है, क्योंकि भारत न केवल उसका सबसे बड़ा हथियार खरीदार है, बल्कि वैश्विक दक्षिण में रूस के हितों की रक्षा करने वाला प्रमुख साझेदार भी है। रूस कभी भी ऐसी स्थिति नहीं बनाना चाहेगा जिससे भारत के साथ उसके दीर्घकालिक संबंधों पर नकारात्मक असर पड़े।
भारत-रूस संबंधों की ऐतिहासिक गहराईवर्ष 1950 और 60 के दशक से लेकर आज तक रूस (पूर्व सोवियत संघ) भारत का सबसे भरोसेमंद रक्षा साझेदार रहा है। वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में रूस ने भारत को जिस तरह से कूटनीतिक और सैन्य समर्थन दिया था, उसने दोनों देशों के रिश्ते को नई ऊंचाई दी। आज भारत के 60 प्रतिशत से अधिक रक्षा उपकरण रूसी तकनीक पर आधारित हैं। रूस ने भारत के परमाणु कार्यक्रम, अंतरिक्ष अभियान और ऊर्जा क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण सहयोग दिया है। कुडनकुलम परमाणु संयंत्र इसका उदाहरण है। इस दीर्घकालिक संबंध की गहराई को देखते हुए, किसी “एक इंजन डील” से भारत-रूस संबंधों पर असर पड़ने की बात करना एक बचकाना तर्क है।
कांग्रेस को आत्ममंथन की आवश्यकतायह समय कांग्रेस के लिए आत्मचिंतन का है। जब रूस ने स्वयं स्पष्ट कर दिया कि पाकिस्तान को इंजन सप्लाई की कोई योजना नहीं है, तो कांग्रेस को माफी मांगनी चाहिए, परंतु उसने अब तक ऐसा नहीं किया। इससे यह संकेत मिलता है कि पार्टी की प्राथमिकता राष्ट्रहित नहीं, बल्कि राजनीतिक अवसरवाद है। वस्तुत: कांग्रेस को यह समझना चाहिए कि भारत और रूस के संबंध केवल रणनीतिक साझेदारी नहीं हैं, बल्कि यह विश्वास और समान दृष्टिकोण पर आधारित एक दीर्घकालिक मित्रता है। यह संबंध किसी एक सरकार के आने या जाने से प्रभावित नहीं होते। आज रूस ने पाकिस्तान के साथ किसी भी सौदे की खबर को खारिज कर दिया है, तो यह मोदी सरकार की कूटनीति की विश्वसनीयता का प्रमाण है। कांग्रेस यह जान ले कि विदेश नीति को घरेलू राजनीति का उपकरण बनाने की प्रवृत्ति अंततः देश की छवि को नुकसान पहुँचाती है। भारत आज जिस वैश्विक स्थिति में है, वह अपनी दृढ़ नीतियों और स्वतंत्र कूटनीति के कारण है। अमेरिका के दबाव में न झुकना, रूस के साथ संबंधों को संतुलित रखना, और वैश्विक मंचों पर भारत की आवाज को प्रभावशाली बनाना, यही आज की सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी
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