अरुण कुमार दीक्षित
लोकसभा और राज्यसभा में ज्वलंत मुद्दों पर आदर्श चर्चा की जिम्मेदारी सरकार और प्रतिपक्ष की बराबर होती है। गत वर्षों में देखा जा रहा है कि सदन में कार्यवाही सुचारू रूप से नहीं चल पा रही है। सदन ठीक नहीं चल पाने के कारण भारतीय जनमानस का नुकसान होता है। निराशा होती है। जनता से जुड़े बुनियादी सवालों पर चर्चा नहीं होने से अनेक मामले लंबित रह जाते हैं। निष्कर्ष नहीं आते। फिर चाहे वह आंतरिक सुरक्षा की बात हो चाहे राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा की बात हो अथवा आतंकवादी हमलों जैसे गंभीर विषय हो। अच्छी चर्चा नहीं होने से सत्ता पक्ष के मंत्रियों को जहां सुविधा होती है कि उन्हें प्रश्नों के उत्तर नहीं देने पड़ते, उनकी जवाबदेही तय नहीं हो पाती है। वहीं, प्रतिपक्ष की नाकामी भी सीधे दिखाई पड़ती है। प्रतिपक्ष जो बातें सदन के बाहर करता है वे सभी बातें प्रश्न लोकसभा राज्यसभा सदन में क्यों नहीं कर पाता है। प्रतिपक्ष सत्ता पक्ष पर दोष मढ़कर अपनी जिम्मेदारी से बचने का प्रयास करता आया है।
यह आदत और ढंग अब बदलने चाहिए। सदनों की कार्यवाही मीडिया में सीधे प्रसारित होती है। सोशल मीडिया में भी दिखाई पड़ती है। इससे क्या प्रतिपक्ष ने कहा और सत्ता पक्ष ने क्या किया? वह सब जन मानस में दृष्टिगत होता रहता है। आदर्श लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती के लिए सदनों में सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष को पारदर्शी ढंग अपनाने होंगे। यदि ऐसा नहीं होता है तो जनता के मन में राजनीतिज्ञों और चुनकर जाने वाले जनप्रतिनिधियों के ऊपर घटते विश्वास को और अधिक बल मिलेगा। लोकसभा सबसे बड़ी और जिम्मेदार संवैधानिक संस्था है। लोकसभा भारत के जन गण मन का मंदिर है। लोकतांत्रिक आस्था का केंद्र है लोकसभा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा में कहा यह सत्र भारत के विजयोत्सव का सत्र है। यह भारत के गौरव गान का सत्र है। यह विजयोत्सव सिंदूर की सौगंध पूरा करने का सत्र है। यह विजयोत्सव आतंकी हेड क्वार्टर को मिट्टी में मिलाने का सत्र है। भारत की सेना के शौर्य साहस की विजयगाथा का विजयोत्सव है। यह सत्र भारत के एक सौ चालीस करोड़ लोगों की एकता का अप्रतिम विजयोत्सव है। उन्होंने प्रतिपक्ष से कहा हमसे किसी तीसरे देश ने युद्ध को लेकर बात नहीं की। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस का प्रधानमंत्री ने नाम लेकर कहा उन्होंने (जेडी वेंस) उनसे कहा कि पाकिस्तान भी जवाबी कार्रवाई करेगा। तो हमने (मोदी ने) कहा कि वह गोली चलाएंगे तो हम जवाब गोले से देंगे। मगर प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य से प्रतिपक्ष संतुष्ट नहीं हुआ। प्रतिपक्ष उत्तर में चाहता था कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड के उस वक्तव्य पर जिस पर ट्रंप ने कई बार कहा है कि पाकिस्तान के विरुद्ध भारत का ऑपरेशन सिंदूर हमने रुकवाया है, पर चर्चा हो। प्रतिपक्ष ने यह भी कहा कि (पीओके) पाक अधिकृत कश्मीर पर कब्जा क्यों नहीं किया गया।
इस पर केंन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि 62 के चीन युद्ध में क्या हुआ 38 हजार वर्ग किमी भूमि अक्साई चीन को छोड़ दी। कहा उस समय जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे। तब नेहरू ने कहा था कि उस भूमि पर तो घास भी नहीं उगती है, क्या करेंगे उस भूमि का। जिस तरह नेता प्रतिपक्ष और अन्य प्रतिपक्षी सरकार को ऑपरेशन सिंदूर को लेकर घेर रहे हैं, वह संचार माध्यमों से सभी ने देखा है। जबकि पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री के स्पष्ट वक्तव्य सदन में स्वयं उनके द्वारा आ चुके हैं। पहले सप्ताह में सदन नही चलने पर संसदीय कार्य मंत्री ने चिंता जताई थी।
आश्चर्य की बात है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर भी लोकसभा और राज्य सभा में प्रतिपक्ष पूरे मनोयोग से प्रधानमंत्री के साथ खड़ा नहीं दिखाई दे रहा था। हंगामा होता रहा। होना तो चाहिए था कि भारत राष्ट्र से किसी देश से हो रहे युद्ध को लेकर अथवा युद्ध जैसी परिस्थितियों में नेता प्रतिपक्ष सहित अलग-अलग संपूर्ण विचारधारा मानने वाले लोगों को राष्ट्र सर्वोपरिता के सिद्धांत पर चलते दिखाई देना चाहिए। पर ऐसा हो न सका। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में कहा कि लोग चाहते थे कि आतंकवादियों के सिर में गोली मारी जाए और ऐसा ही हुआ। तीनों आतंकवादियों को सुरक्षाकर्मियों ने सिर में ही गोली मारी। उन्होंने कहा भारत द्वारा ऑपरेशन सिंदूर की कार्रवाई के बाद पाकिस्तान ने गुहार लगाई। घुटने टेके। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने यह वक्तव्य राज्यसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर हो रही विशेष चर्चा के समय दिया। केंद्रीय गृह मंत्री ने स्पष्ट कहा कि आतंकी शिविरों, आतंकी प्रशिक्षण शिविरों और लॉन्चिंग पैड्स पर हमला 9 मई को किया गया। इस हमले को पाकिस्तान अपने ऊपर मान रहा था। इसके बाद गृहमंत्री कांग्रेस पर हमलावर रहे। मगर प्रतिपक्ष इस वक्तव्य से संतुष्ट नहीं हुआ।
लोकसभा में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दे हो अन्य वे सभी लोकहित से जुड़े होते हैं। सरकार द्वारा प्रतिपक्ष द्वारा उठाए जा रहे विषयों पर गौर करते हुए सदन चलना शुचिता का संदेश होता है। बिहार राज्य की मतदाता सूचियों को लेकर भी दोनों सदनों में हंगामा हो चुका है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने जोर देकर कहा कि अगर लोकतंत्र को मजबूत करना है तो सदस्यों को प्रश्न काल के दौरान ही प्रश्न उठाने होंगे। इससे सरकार की जवाबदेही तय होती है। उन्होंने कहा सांसदों को अपने प्रश्न उठाने दें। देश के लोगों की अपेक्षाएं और आकांक्षाएं पूरी होने दें। देश को आगे बढ़ाने में अपना सहयोग दें।
भारतीय जनमानस में राजनीतिज्ञों के प्रति अविश्वास गहराया है। राजनीतिज्ञ किसी भी बात के प्रति आज आश्वस्त करता है। कल भूल जाता है। राजनीतिक व्यक्ति प्रायः किसी बात के प्रश्नों को मना नहीं करता है। मगर बुनियादी समस्याओं पर जनप्रतिनिधियों के वक्तव्य संवेदनहीन दिखाई देते हैं। जनता के मन में यह विश्वास दृढ़ होता जा रहा है कि चुनाव बाद जनप्रतिनिधियों द्वारा समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता हैं। वे राजनीति के कर्मकांडीय पक्ष माला, माइक, उद्घाटन, पत्थर, आश्वासनों से पांच वर्ष का कार्यकाल गुजार देते हैं। जनता के सामने इसका कोई विकल्प भी नहीं होता है। वे किससे आग्रह करें कि उनके गांव का शैक्षिक वातावरण कैसे ठीक हो? शिक्षा की समस्याओं के साथ उच्च शैक्षिक संस्थानों की मनमानी पर क्या करें ? बेरोजगारी पर कहाँ जाएं। रेल के बिजली के कृषि के पुलिस के राजस्व के सिंचाई के अधिकारियों की मनमानी पर कौन बात करें? परिवहन व्यवस्था ठीक करने के प्रश्न हैं। अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी, दवाओं की कमी , एम्बुलेंस, अस्पताल भवन की कमी है। अनेक भवन जर्जर हैं। बीमारियों की सटीक पहचान करने वाली मशीनों की कमी है। बजट की कमी है। अनेक बुनियादी प्रश्न अनुत्तरित है।
यह भी सही है कि इधर के कुछ वर्षाे में सुधार आया है। कोई भी कानून लोकसभा- राज्यसभा से ही पारित होकर जनता के लिए निकलते हैं। जनता की सुविधा बनते हैं। बड़े मीडिया संस्थान बड़े महानगरों की छोटी खबरों पर ध्यान देते हैं। अधिक फोकस करते हैं। गांव की बड़ी समस्याओं पर छोटी खबरें भी बनाने से कतराते हैं। गत दिनों राजस्थान में एक विद्यालय की छत गिरने से 8 बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई। घटना में खामी कहां थी। सरकारी तंत्र ने क्यों नहीं देखा। यह किसी भी राज्य की जिम्मेदारी है कि प्रत्येक व्यक्ति की जीवन रक्षा का कर्तव्य उसी की है। इसका मतलब यह नहीं है कि जहां घटना होती है वहां की सरकार किस रंग की है। किस झंडे की है। किस दल की है। सरकारी भवनों की गुणवत्ता किसी से छुपी नहीं है। नौकरशाही और राजनीति जब तक ईमानदारी, दृढ़ इच्छा शक्ति से काम नहीं करेगी तब तक इस तरह की घटनाओं में कमी नही आएगी। लोकसभा में बहस से ही लोकहित संभव है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश
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