संसद का मॉनसून सत्र 21 जुलाई को शुरू हुआ. बतौर राज्यसभा के सभापति दिन में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन किया.
लेकिन 21 जुलाई की रात भारत के उपराष्ट्रपति के आधिकारिक एक्स अकाउंट पर उनका इस्तीफ़ा आ गया.
राष्ट्रपति को लिखे इस इस्तीफ़े में जगदीप धनखड़ ने अपनी सेहत का हवाला दिया. लेकिन विपक्ष और कई राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि उनके इस्तीफ़े की वजह सिर्फ़ उनकी सेहत नहीं लगती.
बीबीसी हिंदी के साप्ताहिक कार्यक्रम, 'द लेंस' में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़म मुकेश शर्मा ने जगदीप धनखड़ के इस्तीफ़े, उसके पीछे की संभावित वजह से लेकर विपक्ष की प्रतिक्रिया और अगला उपराष्ट्रपति कौन हो सकता है, इस पर चर्चा की.
इस चर्चा में मुकेश शर्मा के साथ बीबीसी हिंदी के पूर्व संपादक संजीव श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार सबा नक़वी और द हिंदू की वरिष्ठ पत्रकार श्रीपर्णा चक्रवर्ती शामिल हुईं.
जगदीप धनखड़ ने इस्तीफ़ा क्यों दिया?धनखड़ के इस्तीफ़े पर अटकलें इसलिए भी लगाई जा रही हैं क्योंकि इस महीने की शुरुआत में ही एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि वह अगस्त 2027 में रिटायर होंगे.
उपराष्ट्रपति के सचिवालय ने कुछ समय पहले ही उनके आने वाले समय में जयपुर के कार्यक्रम की घोषणा की थी. इतना ही नहीं, अपने इस्तीफ़े वाले दिन धनखड़ ने तीन बैठकों की अध्यक्षता भी की थी.
उन बैठकों में शामिल कुछ सांसदों ने बाद में कहा कि बैठकों की चर्चा में कहीं ऐसा नहीं लगा कि वह इस्तीफ़ा दे सकते हैं.
विपक्ष के साथ-साथ कई राजनीतिक विश्लेषक भी धनखड़ के इस्तीफ़े की वजह सिर्फ़ सेहत नहीं मान रहे हैं.
बीबीसी के पूर्व संपादक संजीव श्रीवास्तव कहते हैं कि स्वास्थ्य कारण अंतिम कारणों में से एक होगा, लेकिन अहम सवाल यह है कि उस दिन धनखड़ सारे काम सुचारू रूप से और बखूबी अंजाम दे रहे थे, फिर ऐसा क्या हुआ?
संजीव श्रीवास्तव कहते हैं, "जो कुछ भी हुआ है वह करीब शाम 4 बजे और 8 बजे के बीच उन चार घंटों में हुआ. 4 बजे उन्होंने बीएसी (बिज़नेस एडवाइज़री कमेटी) की अपनी दूसरी मीटिंग रखी थी, जिसमें बीजेपी के नेता नहीं आए. जेपी नड्डा, किरेन रिजिजू , अर्जुन राम मेघवाल और उसके बाद से एकदम से चीज़ें बढ़ते-बढ़ते शाम को इस्तीफ़े में इसका पटाक्षेप हुआ."
श्रीपर्णा चक्रवर्ती भी कहती हैं कि उन चार घंटों में कुछ तो हुआ, लेकिन अब ये सारी चीज़ें सूत्रों के हवाले से ही हैं, लेकिन ज़ाहिर है कि सरकार और उपराष्ट्रपति के बीच कुछ असहमति थी.
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संजीव श्रीवास्तव कहते हैं कि उनकी इस बारे में धनखड़ से बात नहीं हुई है, लेकिन जो जानकारी मिल रही है, उसके मुताबिक़ कुछ लोग कह रहे हैं कि धनखड़ को हटाने की बात हो रही थी.
हालांकि, संजीव श्रीवास्तव यह भी कहते हैं, "कोई भी सरकार अपने उपराष्ट्रपति को क्यों हटाएगी? लेकिन शायद धनखड़ तक ये बात पहुंची कि ये भी एक संभावना है, जिसके बारे में बात चल रही है और वह प्लांट हुई ख़बर सही थी या ग़लत थी, नहीं मालूम."
संजीव श्रीवास्तव धनखड़ के पास आए एक 'फ़ोन' का ज़िक्र करते हैं.
वह बताते हैं, "धनखड़ के पास एक बहुत ही सीनियर... एक तरह से पीएम के रिप्रेजेंटेटिव का फ़ोन आया कि सरकार आपसे बहुत नाराज़ है. इसके जवाब में धनखड़ ने कहा कि नाराज़ हैं तो मैं इस्तीफ़ा दे देता हूँ और उसके जवाब में दूसरी तरफ़ से मनाने का कोई प्रयास नहीं हुआ."
सबा नक़वी कहती हैं, "धनखड़ को पश्चिम बंगाल का गवर्नर बनाया गया, उस राज्य का गवर्नर, जिस पर बीजेपी की नज़र है. उन्होंने पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को पूरा परेशान किया. फिर इसका इनाम देते हुए उन्हें उपराष्ट्रपति बना दिया गया. जब तक धनखड़ बीजेपी का काम कर रहे थे, पार्टी के लिए कुछ चैलेंज नहीं थे, तब तक कोई समस्या नहीं थी."
वहीं संजीव श्रीवास्तव सवाल उठाते हैं, "जब धनखड़ को उनकी जगह मिली, तो पिछले छह-आठ महीने में ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने अपने हाथ से इस पद को निकल जाने दिया क्योंकि जितना मैं जानता हूं कि वह इस्तीफ़ा कभी नहीं देते, लेकिन उनको समझ में आ गया होगा कि इसका कोई विकल्प नहीं है."
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संजीव श्रीवास्तव और श्रीपर्णा चक्रवर्ती दोनों का मानना है कि सरकार और धनखड़ के बीच जो नाराज़गी थी वह कई महीनों से चल रही थी.
श्रीपर्णा चक्रवर्ती कहती हैं, "मैंने सुना है कि उपराष्ट्रपति होने के नाते धनखड़ कुछ विदेशी गणमान्य व्यक्तियों से मिलना चाहते थे, जो आप जानते हैं, नहीं हो पाया. सरकार ने ऐसा नहीं होने दिया और वह इस बात से बहुत नाराज़ थे. किसानों के मुद्दों को लेकर भी उनके मज़बूत विचार थे और हम सबने वह एक क्लिप देखी है, जब वह शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में किसानों को लेकर सरकार के कमिटमेंट्स की बात कर रहे थे."
इसके अलावा न्यायपालिका के ख़िलाफ़ धनखड़ की बयानबाज़ी को भी मोदी सरकार के साथ रिश्ते बिगड़ने की एक वजह समझी जा रही है.
धनखड़ न्यायपालिका के ख़िलाफ़ खुलकर बोल रहे थे. संजीव श्रीवास्तव का मानना है कि यह धनखड़ की सबसे बड़ी ग़लती रही.
संजीव श्रीवास्तव कहते हैं, "धनखड़ न्यायपालिका को लेकर जो बार-बार सार्वजनिक बयान देते थे. वह समझ में आता है क्योंकि वह उनके जीन में था. उन्होंने अपना जीवन अदालतों में बिताया, वह वकील रहे हैं. ऐसे में उनका मत प्रकट करना स्वाभाविक था."
"सरकार को लगता था कि धनखड़ का न्यायपालिका के ख़िलाफ़ बोलने को यह न समझा जाए कि वह सरकार के कहने पर न्यायपालिका के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं."
जस्टिस वर्मा पर विपक्ष के प्रस्ताव को मंज़ूरी देना पड़ा भारी?धनखड़ के इस्तीफ़े के पीछे एक वजह राज्यसभा में उनकी ओर से जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले में विपक्ष के प्रस्ताव को मंज़ूरी देना भी माना जा रहा है.
ऐसा इसलिए क्योंकि मोदी सरकार जस्टिस यशवंत वर्मा वाले विषय को अपने ढंग से डील करना चाहती थी.
श्रीपर्णा चक्रवर्ती कहती हैं, "जस्टिस वर्मा मामले पर सरकार यह दिखाना चाहती थी कि वह विपक्ष के साथ मिलकर संयुक्त प्रस्ताव ला रही है. लोकसभा में इस प्रस्ताव पर एनडीए और विपक्ष दोनों के सिग्नेचर थे. वहीं राज्यसभा में जस्टिस वर्मा पर जो प्रस्ताव लाया गया, उसमें सिर्फ़ विपक्ष के सिग्नेचर्स थे और धनखड़ ने राज्यसभा में घोषणा की कि 50 सिग्नेचर चाहिए होते हैं और उनके पास विपक्ष का प्रस्ताव आ गया है."
श्रीपर्णा चक्रवर्ती का यह भी कहना है कि एनडीए को बताया भी नहीं गया था कि यह प्रस्ताव आ रहा है.
संजीव श्रीवास्तव भी कहते हैं, "उस दिन पानी सर के ऊपर से निकल गया. मुझे लगता नहीं कि उस दिन दोपहर से पहले सरकार में किसी ने सोचा होगा कि धनखड़ को हटाया जाएगा, न धनखड़ ने सोचा होगा कि वह इस्तीफ़ा देंगे. बस, कई बातें इकट्ठी होकर उस दिन पानी डेंजर लेवल के ऊपर निकल गया और सैलाब आ गया."
विपक्ष को भी अंदाज़ा नहीं था?धनखड़ के इस्तीफ़े के बाद विपक्षी दलों के जो बयान आए, उससे ऐसा लगा कि विपक्ष को भी इसका अंदाज़ा नहीं था.
दिसंबर 2024 में विपक्ष धनखड़ के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया था. वहीं धनखड़ के अचानक दिए इस्तीफ़े पर विपक्ष के कई नेताओं ने सवाल उठाया.
सबा नक़वी कहती हैं कि धनखड़ ने राज्यसभा में बहुत बार विपक्ष को बोलने नहीं दिया और अब विपक्ष धनखड़ के लिए आवाज़ उठा रहा है.
हालांकि, वह विपक्ष के इस रवैये को सही ठहराते हुए कहती हैं, "विपक्ष सवाल क्यों न उठाए क्योंकि ये तरीक़ा भी ग़लत है कि आप ही ने एक शख़्स को चुना और उसका कार्यकाल पूरा होने से पहले उसे निकाल दिया. धनखड़ बीजेपी का काम कर रहे थे, लेकिन बीच में उन्होंने थोड़ा सा विपक्ष से मेलजोल बढ़ा दिया, तो बीजेपी यह सह नहीं पाई."
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संजीव श्रीवास्तव के मुताबिक़ अगला उपराष्ट्रपति कोई भी हो सकता है.
वह कहते हैं, "विश्लेषण के आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि जिस तरह से अब तक इस सरकार में राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति बने हैं या जिस तरह मंत्री पद दिए जाते हैं. अगर किसी का नाम ज़्यादा चर्चा में आ गया तो वह पक्का नहीं बनेगा."
"इस सरकार की जो कमज़ोरी मुझे दिखती है, वह यह है कि वर्तमान सरकार हमेशा सरप्राइज़ देना चाहती है. अगर इनके फ़ैसले से सरप्राइज़ फ़ैक्टर ही चला गया तो उनका वैसे ही मन खट्टा हो जाएगा और वह कुछ और डिसीज़न ले लेंगे. ऐसे में जिनके नाम चल रहे हैं, उनके उपराष्ट्रपति बनने की संभावना मुझे नहीं लग रही है क्योंकि उनके नाम चर्चा में आ चुके हैं."
संजीव श्रीवास्तव नीतीश कुमार को भी उपराष्ट्रपति बनाए जाने की संभावना से इनकार करते हैं.
वह कहते हैं, "नीतीश को बिहार चुनाव से पहले हटाना बीजेपी और नीतीश कुमार दोनों के लिए नुक़सान का सौदा साबित होगा."
वहीं श्रीपर्णा कहती हैं कि इस पर विपक्ष भी अपनी रणनीति बना रहा है. उन्हें लगता है कि कांग्रेस की ओर से जो भी उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार होगा, उसे पूरे इंडिया ब्लॉक का समर्थन होगा.
सबा नक़वी कहती हैं कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के एक-दो लोग हैं, जो इसका फ़ैसला लेंगे, लेकिन उनके मुताबिक़ बीजेपी इसके लिए आरएसएस की भी राय लेगी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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