चर्चित पब्लिक प्रॉसिक्यूटर उज्ज्वल निकम ने एक यूट्यूबर से बातचीत में बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त से जुड़े मामले पर कई बातें साझा की हैं.
उन्होंने कहा कि संजय दत्त को 1993 के मुंबई धमाकों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
निकम के मुताबिक, संजय दत्त को सिर्फ हथियारों का शौक था.
उज्ज्वल निकम को इस साल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने राज्यसभा का सदस्य मनोनित किया है. उन्होंने 2024 में बीजेपी के टिकट पर मुंबई नॉर्थ सेंट्रल से लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन वे हार गए थे.
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साल 1993 के मुंबई बम धमाकों से लेकर संजय दत्त पर टाडा केस और मुंबई अंडरवर्ल्ड से जुड़े कई अहम मामलों में सरकार की पैरवी करने वाले पूर्व पब्लिक प्रासिक्यूटर उज्ज्वल निकम ने एक यूट्यूबर से कई अहम मुद्दों पर बातचीत की है.
12 मार्च 1993 को मुंबई में सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे.
इसके बाद संजय दत्त को अबू सलेम और रियाज़ सिद्दीक़ी से अवैध बंदूक़ों की डिलीवरी लेने, उन्हें रखने और फिर नष्ट करने का दोषी माना गया था.
साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने टाडा अदालत के फ़ैसले को सही ठहराते हुए संजय दत्त को पांच साल की सज़ा सुनाई थी.
साल 2016 में यरवडा जेल से रिहा होने के बाद फ़िल्म अभिनेता संजय दत्त ने मीडिया से आग्रह किया था कि अब उनका ज़िक्र साल 1993 धमाकों से जोड़ते हुए नहीं किया जाना चाहिए.
मुंबई में संवाददाता सम्मेलन में संजय दत्त ने कहा था, "मैं आतंकवादी नहीं हूं और मीडिया से आग्रह करता हूँ कि अब साल 1993 के धमाकों से मुझे नहीं जोड़ें."
निकम ने जिन हाई प्रोफ़ाइल और चर्चित मामलों में महाराष्ट्र सरकार की तरफ से अदालतों में पैरवी की है उसकी सूची काफ़ी लंबी है. निकम मुंबई बम धमाकों के बाद अदालतों में फौजदारी मामलों की पैरवी करने वाले प्रमुख वकील (पब्लिक प्रॉसिक्यूटर) के तौर पर उभरे थे.
यूट्यूबर से बातचीत में उज्ज्वल निकम ने मुंबई बम ब्लास्ट और मुंबई में हुए सांप्रदायिक दंगों और संजय दत्त से जुड़े कई मुद्दों पर भी बातचीत की.
उन्होंने संजय दत्त के ख़िलाफ़ चले मामलों पर विस्तार से चर्चा की.
निकम ने कहा, "व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि वो (संजय दत्त) हथियारों को लेकर बहुत क्रेज़ी थे. इसलिए उन्होंने एके-56 राइफ़ल अपने पास रख ली थी. लेकिन 12 मार्च के 15- 20 दिन पहले अबू सलेम एक टेंपो ट्रक में हथियार लेकर आया था, जो संजय दत्त ने देखे थे और अपने पास एक एके-56 रख ली, बाक़ी लौटा दी. लेकिन उसे भी आर्म्स एक्ट में सज़ा हुई."
उज्ज्वल निकम ने बताया, "जब संजय दत्त के पास पहली बार हथियार पहुंचा था. उसी वक़्त वो पुलिस को बता देते कि ऐसे-ऐसे टेंपो में हथियार आए थे, उसमें आरडीएक्स, हैंड ग्रेनेड थे. अगर वो इतना भी बता देते तो पुलिस छानबीन करके धमाकों को रोक सकती थी."
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ये पूछे जाने पर कि क्या उनपर संजय दत्त के केस में कभी कोई दबाव बनाया गया, निकम ने कहा, "मुझपर कोई दबाव नहीं था. आपको पता है कि जब मैं यह केस लड़ रहा था तो कोर्ट ने आर्म्स एक्ट में उन्हें सज़ा दी. उनके वकीलों ने कहा था यह संजय दत्त का पहला गुनाह है इसलिए इसका लाभ दिया जाना चाहिए."
उन्होंने आगे कहा, "मैंने इस तर्क का विरोध किया था. कोर्ट ने उनके तर्क को ख़ारिज़ कर दिया."
"जहां तक मेरा मानना है तो मुंबई बम ब्लास्ट में संजय दत्त की कोई सीधी भूमिका नहीं थी. मुझे नहीं लगता कि संजय दत्त को पता होगा कि बम ब्लास्ट होने वाला है."
उज्ज्वल निकम ने भी कहा है कि संजय दत्त के मामले में बालासाहेब ठाकरे से भी उनकी मुलाक़ात हुई थी.
निकम का कहना है, "हां.. मुझसे भी मुलाक़ात हुई थी. कहा था कि वो बेगुनाह है, उसे छोड़ दो. ऐसा किसके असर में कहा गया मुझे नहीं पता लेकिन बालासाहेब दयालु इंसान थे, उनके पास कोई रोते-धोते जाता था कि मेरे अन्याय हुआ है तो वो सुन लेते थे."
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नवंबर, 2008 में मुंबई पर एक बड़ा चरमपंथी हमला हुआ. सुरक्षा बलों और चरमपंथियों के बीच इस हमले के बाद तीन दिनों तक संघर्ष चला और इसमें अजमल क़साब नाम का एकमात्र चरमपंथी जीवित पकड़ा गया.
क़साब को इस मामले में फांसी की सज़ा दी गई.
निकम ने बताया कि जिस समय यह हमला हुआ था उस समय वो गोवा में थे और रात में जानकारी मिलने के बाद वो सुबह ही मुंबई आ गए थे.
क़साब के बारे में बात करते हुए निकम ने कहा. "उसे पता चल गया था कि मैं ही उसके ख़िलाफ़ कोर्ट में केस लड़ रहा हूं. मैं उसे देखता था कि इसी ने और इसके गैंग ने लोगों की जान ली है. उसने ऐसा क्यों किया और इसे कैसे साबित करना है ये मेरे लिए बड़ा मुद्दा था."
निकम ने कहा, "उनका मुंबई पहुंचने का समय शाम के साढ़े छह बजे का था, लेकिन किस्मत से वो लेट हो गए. अगर वो साढ़े छह बजे पहुंच जाते तो मुंबई हमले में मरने वालों की तादाद काफ़ी ज़्यादा बढ़ जाती, क्योंकि रेलवे के सीएसटी स्टेशन पर साढ़े पांच बड़े से साढ़े सात बजे तक बहुत भीड़ रहती है."
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साल 2013 के अगस्त महीने में 22 साल की एक फ़ोटो पत्रकार का पांच लोगों ने गैंग रेप किया था. इस मामले को शक्ति मिल्स गैंग रेप केस नाम से जाना जाता है.
इस मामले में कोर्ट ने तीन अभियुक्तों को मौत की सज़ा सुनाई थी. पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के तौर पर उज्ज्वल निकम ने इस केस की पैरवी भी की थी.
इस मामले में कई बार सवाल उठे थे कि सरकारी वकील ने बलात्कार की शिकार से असहज करने वाले कई सवाल पूछे थे.
निकम ने कहा, "क़ानून ऐसा है. बलात्कार हुआ है. यानी क्या हुआ है वो कोर्ट में पूरा बताना पड़ता है. मैं मानता हूं कि यह अमानवीयता है. इसमें सुधार की ज़रूर है."
"इस सवाल जवाब में बलात्कार की शिकार लड़की बेहोश होकर गिर गई थी तो मैंने ही कोर्ट को सुनवाई टालने को कहा था."
निकम ने ऐसे सवाल-जवाब को क़ानून और इंसाफ़ दिलाने के लिहाज से जरूरी बताया.
उन्होंने कहा, "यह भावनात्मक मुद्दा हो जाता है. यह बहुत ज़्यादा क्रूर होता है. लेकिन क़ानून को जो चाहिए वो करना पड़ता है."
इन मामलों के अलावा उज्ज्वल निकम 12 अगस्त, 1997 को मुंबई में हुई बॉलीवुड फ़िल्म प्रोड्यूसर गुलशन कुमार की हत्या के मामले में भी पब्लिक प्रॉसिक्यूटर थे.
निकम बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रमोद महाजन की हत्या के मामले में भी सरकारी वकील रह थे. महाजन की हत्या 22 अप्रैल, 2006 को उनके छोटे भाई प्रवीण महाजन ने कर दी थी. इस मामले में प्रवीण को उम्र कैद की सज़ा हुई थी.
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