बांग्लादेश में आम चुनाव अगले साल होंगे, लेकिन उससे पहले यहां ढाका यूनिवर्सिटी का छात्र संघ चुनाव हुआ.
इस छात्र संघ चुनाव के नतीजे जमात-ए-इस्लामी पार्टी के लिए बहुत अच्छे, तो बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के लिए निराश करने वाले रहें.
बांग्लादेश की ढाका यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनाव के नतीजे बुधवार को घोषित किए गए.
इस चुनाव में जमात-ए-इस्लामी की छात्र शाखा बांग्लादेश इस्लामी छात्रशिबिर के समर्थन वाले पैनल ने बड़ी जीत हासिल की है.
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ढाका यूनिवर्सिटी सेंट्रल स्टूडेंट्स यूनियन के चुनाव मंगलवार को हुए थे.
बांग्लादेश के समाचार पत्र प्रोथोम अलो के मुताबिक़ इस चुनाव में छात्रशिबिर के उम्मीदवारों ने 28 में से 23 पदों पर जीत हासिल की.
जमात-ए-इस्लामी की जीत का मतलब
जानकारों के मुताबिक़ 1971 में बांग्लादेश की आज़ादी के बाद यह पहली बार है जब किसी इस्लामी छात्र संगठन को ऐसी सफलता मिली है.
अंतरराष्ट्रीय मामलों की विश्लेषक और ग्रेटर वेस्ट एशिया फोरम, इंडिया की फ़ाउंडर मेंबर डॉ. मंजरी सिंह ढाका यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ चुनाव के नतीजों को जमात-ए-इस्लामी पार्टी के लिए काफी अहम बताती हैं.
वह कहती हैं, "ढाका यूनिवर्सिटी बांग्लादेश में बहुत ही प्रोग्रेसिव यूनिवर्सिटी मानी जाती है और वहां पर जमात-ए-इस्लामी के स्टूडेंट विंग इस्लामी छात्रशिबिर के उम्मीदवारों की जीत का मतलब यह है कि कट्टरवादी संगठन ने प्रोग्रेसिव यूनिवर्सिटी में अपनी जगह बना ली है."
एक्सपर्टस के मुताबिक़ मौजूदा समय में जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश में एक मजबूत राजनीतिक पार्टी के तौर पर नज़र आ रही है.
ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन में स्टडीज़ एंड फ़ॉरेन पॉलिसी के उपाध्यक्ष प्रोफ़ेसर हर्ष वी पंत कहते हैं, "जमात-ए-इस्लामी की समाज में भूमिका देखें, उसकी लामबंदी की क्षमता देखें, तो आज वो एक मजबूत राजनीतिक पार्टी के तौर पर खड़ी नज़र आ रही है, जबकि पहले आवामी लीग और बीएनपी जैसी दो बड़ी राजनीतिक शक्तियां ही नज़र आती थीं."
प्रोफ़ेसर हर्ष वी पंत कहते हैं कि आवामी लीग का अब कोई प्रभाव नहीं रह गया है और बीएनपी में लीडरशिप का क्राइसिस बना हुआ है.
"इसको देखते हुए बड़ा स्वाभाविक है कि एक कट्टरपंथी इस्लामिक पार्टी के तौर पर जमात उस खालीपन को भरने में सफल हुई है और इसका असर हमको राजनीति में ज़रूर नज़र आएगा."
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आम चुनावों से पहले देश की बड़ी यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनाव में, कट्टरपंथी पार्टी के स्टूडेंट विंग की जीत इस बात का संकेत है कि बांग्लादेश की सत्ता पर कट्टरपंथी इस्लामिक नेताओं की पकड़ मज़बूत हो रही है.
हर्ष पंत कहते हैं. "ढाका यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनाव से बांग्लादेश के राजनीतिक मूड को लेकर कोई निश्चित निष्कर्ष निकाल पाना मुश्किल है. लेकिन जमात-ए-इस्लामी ने उस खालीपन को भरा है. जो आवामी लीग और बीएनपी जैसी मेनस्ट्रीम पॉलिटिकल पार्टियों के विघटन से पैदा हुआ है."
दक्षिण एशियाई देशों में युवाओं की आबादी पर ज़ोर देते हुए डॉ. मंजरी सिंह कहती हैं कि आज के दौर में किसी भी देश के विकास और राजनीति में युवाओं की भागीदारी बहुत अहम है.
वह कहती हैं. "ऐसे में किसी कट्टरवादी संगठन के यूथ विंग का जीतना यह दिखाता है कि उनकी ज़्यादातर युवा आबादी उस संगठन की विचारधारा से सहमत है और उससे प्रभावित भी हो रही है."
डॉ. मंजरी सिंह के मुताबिक़ ढाका यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनाव के नतीजों से यह संकेत मिलता है कि बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी ने बहुसंख्यक आबादी के बीच अपना वर्चस्व बना लिया है.
वहीं ढाका यूनिवर्सिटी के डेवलपमेंट स्टडीज़ डिपार्टमेंट के प्रोफ़ेसर आसिफ़ शहान छात्रशिबिर को मिले समर्थन की अलग वजह बताते हैं.
बांग्लादेश के अख़बार द बिज़नेस स्टैंडर्ड के एक आर्टिकल के मुताबिक़ प्रोफ़ेसर आसिफ़ शहान का कहना है कि कई स्टूडेंट्स ने वैचारिक सहमति के कारण नहीं, बल्कि दूसरी पार्टियों की नाकामियों से हुई हताशा के कारण छात्रशिबिर को वोट दिया.
भारत के लिए क्या संकेत हैं?प्रोफ़ेसर हर्ष वी पंत और मंजरी सिंह दोनों ही ढाका छात्रसंघ चुनाव के नतीज़ों को भारत के लिए चिंता का विषय बताते हैं.
हर्ष पंत कहते हैं, "जिस तरह का भारत विरोधी एजेंडा जमात ने चलाया है वो भारत के लिए स्वाभाविक तौर पर चिंता का विषय बन जाता है."
मंजरी सिंह कहती हैं, "जमात-ए-इस्लामी को पाकिस्तान का समर्थन मिलता है, बल्कि पाकिस्तान में इनकी जीत को काफ़ी ज़्यादा सराहा गया था. मुझे लगता है कि जमात के स्टूडेंट विंग की जीत को भी वहां उसी तरह से देखा जाएगा."
हर्ष पंत कहते हैं कि ऐसे में बांग्लादेश की विदेश नीति में बदलाव की कीमत भारत और बांग्लादेश संबंधों को भी चुकानी पड़ेगी.
डॉ. मंजरी सिंह बताती हैं, "जब जमात-ए-इस्लामी का गठन हुआ था, उस वक़्त से ही इनके जो सिद्धांत रहे हैं, वह बहुत ही कट्टरपंथी थे. ये सिर्फ़ भारत ही नहीं बल्कि बांग्लादेश में भी चिंता की बड़ी वजह रहा है और इसी कारण इसे बांग्लादेश में जमात को कई बार बैन किया गया."
छात्रसंघ चुनाव के नतीज़े और धांधली के आरोप
यूनिवर्सिटी प्रशासन ने छात्रशिबिर उम्मीदवार सादिक़ क़ायम को उपाध्यक्ष और एसएम फरहाद को महासचिव यानी जनरल सेक्रेटरी घोषित किया. वहीं अध्यक्ष का पद विश्वविद्यालय के कुलपति के लिए आरक्षित है.
इस छात्रसंघ चुनाव में छात्रशिबिर के पैनल 'यूनाइटेड स्टूडेंट्स अलायंस' का मुख्य मुकाबला बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की छात्र शाखा, जातीयताबादी छात्र दल (जेसीडी) के उम्मीदवारों से था.
हालांकि, छात्रशिबिर के उम्मीदवारों ने भारी अंतर से जीत हासिल की. जातीयताबादी छात्र दल ने इस चुनाव में 'धांधली' का आरोप लगाया है.
जातीयताबादी छात्र दल के उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवार मोहम्मद आबिदुल इस्लाम ने फेसबुक पर लिखा. "मंगलवार दोपहर से ही हमें धांधली का अंदेशा था. जैसे चाहो आंकड़े लिख दो. हमने इस तमाशे को ख़ारिज कर दिया है."
पिछले साल शेख़ हसीना की अवामी लीग सरकार गिराने और मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के लिए रास्ता बनाने वाले स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन (एसएडी) का असर इस बार काफ़ी कमजोर रहा. आंतरिक गुटबाज़ी की वजह से यह संगठन कोई प्रभाव नहीं डाल सका.
एसएडी उम्मीदवार अब्दुल क़ादिर ने आरोप लगाया कि छात्रशिबिर ने "मतगणना केंद्रों के अंदर से धांधली की". जबकि जेसीडी ने "बाहर से गड़बड़ी की".
एसएडी की पूर्व प्रवक्ता उमामा फ़ातिमा ने भी स्वतंत्र स्टूडेंट पैनल से चुनाव लड़ने के बाद मतदान का बहिष्कार कर दिया.
यह बांग्लादेश की अंतरिम सरकार बनने के बाद पहला छात्र संघ चुनाव था और इसमें स्टूडेंट्स ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
बांग्लादेश के अख़बार द बिज़नेस स्टैंडर्ड में शादिक महबूब इस्लाम अपने एक आर्टिकल में लिखते हैं. "इस चुनाव में 78 प्रतिशत वोटिंग दर्ज की गई, हालांकि कुछ जगहों पर गड़बड़ियों के आरोप लगे."
वहीं इसी आर्टिकल में ढाका यूनिवर्सिटी के डेवलपमेंट स्टडीज़ डिपार्टमेंट के प्रोफ़ेसर आसिफ़ शहान ने बताया. "मतदान एजेंटों को लेकर समस्याएं थीं, नियम भी स्पष्ट नहीं थे और कुछ दूसरी मामूली गड़बड़ियां भी रहीं. लेकिन 78 प्रतिशत बहुत बड़ी संख्या है और इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता."
प्रोफ़ेसर आसिफ़ शहान ने कहा. "मुझे नहीं लगता कि इन गड़बड़ियों ने नतीजों पर कोई खास असर डाला है. नतीजों में हेरफेर के आरोप लगाए गए हैं, लेकिन जिस तरह मतगणना पर गहन निगरानी रखी गई, ऐसे में इस तरह की हेरफेर करना बेहद मुश्किल है."
द बिज़नेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट में बताया गया कि जमात-ए-इस्लामी ढाका छात्र संघ चुनाव के नतीजों से बेहद उत्साहित है और उसे आम चुनावों में भी इस तरह के प्रदर्शन की उम्मीद है.
वहीं कई बीएनपी नेताओं ने अख़बार से कहा कि पार्टी ने आगामी आम चुनाव में जमात-ए-इस्लामी का मुकाबला करने के तरीकों पर विचार करना शुरू कर दिया है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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