शिक्षा मंत्री के गृह ज़िले कोटा में आज भी कई सरकारी स्कूल कियोस्क, सामुदायिक भवनों और अस्थायी जगहों पर चल रहे हैं, जहाँ न तो बुनियादी ढाँचा है और न ही बच्चों के लिए अनुकूल शैक्षणिक माहौल। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ख़ुद रामगंजमंडी क्षेत्र के विधायक भी हैं और उन्होंने पहले नए स्कूल भवनों के निर्माण की घोषणा की थी, लेकिन ये घोषणाएँ अभी भी अधूरी हैं। स्कूल भूमिहीन होने के कारण, इन्हें कियोस्क, सामुदायिक भवनों और अन्य जुगाड़ से व्यवस्था करके चलाना पड़ रहा है।
इन स्कूलों में बच्चों और शिक्षकों के बैठने की पर्याप्त व्यवस्था भी नहीं है। ऐसे में कक्षा-कक्षों की कमी के कारण पहली से बारहवीं तक की कक्षाएँ एक-दो कमरों में ही चलानी पड़ती हैं। इससे उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पाती। बारिश के दिनों में तो कक्षाएं बाधित हो जाती हैं। अब सवाल यह है कि जब मंत्री जी अपने ही क्षेत्र की तस्वीर नहीं सुधार पाए, तो प्रदेश भर के स्कूलों की हालत कैसे सुधरेगी? सिर्फ़ घोषणाओं की नहीं, बल्कि ठोस ज़मीनी कार्रवाई की ज़रूरत है, ताकि स्कूलों में वाकई 'सुधार' हो सके।
भूमि आवंटन के लिए प्रयास जारी
भूमिहीन विद्यालयों के लिए भूमि आवंटन के प्रयास जारी हैं। इनकी फाइलें तैयार कर केडीए को भेज दी गई हैं। भूमि आवंटन केडीए के माध्यम से ही संभव होगा।
यूआईटी कियोस्क में स्कूल
शहर के बरदा बस्ती क्षेत्र में संचालित राजकीय प्राथमिक विद्यालय की स्थिति बेहद चिंताजनक है। इस विद्यालय का कोई स्थायी भवन नहीं है। वर्तमान में यह यूआईटी कियोस्क के तीन छोटे कमरों में चल रहा है। इनमें से दो कमरे कक्षाओं के लिए हैं जबकि एक का उपयोग शिक्षक कक्ष के रूप में किया जा रहा है। विद्यालय में कक्षा 1 से 5 तक की पढ़ाई होती है, लेकिन मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। बच्चों के लिए पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। शौचालय तो बने हैं, लेकिन उनमें पानी उपलब्ध नहीं है। शिक्षकों की संख्या भी पर्याप्त नहीं है। कई बार कक्षाएं संचालित करने के लिए आस-पास के विद्यालयों से अस्थायी रूप से शिक्षकों को बुलाया जाता है। स्थानीय पार्षद की पहल पर पास की खाली जमीन पर लोहे की चादरें डालकर कुछ जगह तैयार की गई है, लेकिन वह भी अस्थायी राहत ही है।
23 वर्षों से सामुदायिक भवन में स्कूल
सूरसागर क्षेत्र का राजकीय प्राथमिक विद्यालय वर्ष 2001 से नगर निगम के सामुदायिक भवन में संचालित हो रहा है। दो दशक से अधिक समय बीत जाने के बावजूद, इस विद्यालय को अपना भवन नसीब नहीं हो पाया है। शुरुआत में यह विद्यालय एक मंदिर परिसर में चलता था, लेकिन बाद में नगर निगम ने सामुदायिक भवन के दो कमरे पढ़ाई के लिए उपलब्ध करा दिए। वर्तमान में कक्षा 1 से 5 तक की पढ़ाई एक कमरे में होती है, जबकि दूसरे कमरे का उपयोग शिक्षण और मध्याह्न भोजन (पोषाहार) के लिए किया जाता है। विद्यालय में 50 से अधिक बच्चे नामांकित हैं, लेकिन शिक्षकों की संख्या भी पूरी नहीं है। मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव है। न तो खेलकूद के लिए जगह है, न ही पेयजल या साफ-सफाई की पर्याप्त व्यवस्था है। स्थानीय लोगों और शिक्षकों द्वारा कई बार भवन निर्माण की मांग उठाई जा चुकी है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। यदि स्थायी भवन और पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों, तो यहाँ अधिक बच्चों का नामांकन संभव है।
इधर, अखाड़े में हो रही पढ़ाई
किशोरपुरा क्षेत्र स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय जेठियों का अखाड़ा की जमीन पर वर्षों से संचालित हो रहा है। विद्यालय के पास न तो अपना भवन है और न ही पर्याप्त कक्षा-कक्ष। यहां पहली से 12वीं तक की कक्षाओं में पढ़ाई होती है, लेकिन जगह के अभाव में खुले चौक में टीन शेड लगाकर पढ़ाई हो रही है। शिक्षकों की संख्या फिलहाल संतोषजनक है, लेकिन संसाधनों की भारी कमी है। अलग-अलग कक्षाओं को टीन शेड के नीचे बांटकर चलाया जा रहा है। इससे न केवल शिक्षण कार्य प्रभावित होता है, बल्कि बच्चों के बैठने, पढ़ाई करने और गर्मी-बारिश से बचाव की भी उचित व्यवस्था नहीं है। वर्तमान में विद्यालय में 200 से अधिक विद्यार्थी नामांकित हैं। भवन निर्माण को लेकर जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों ने कई बार प्रयास किए, लेकिन अभी तक कोई स्थायी समाधान नहीं हो पाया है। यह विद्यालय इस बात का उदाहरण है कि संसाधनों के बिना भी शिक्षा की अलख तो जगी है, लेकिन सरकारी उदासीनता के कारण मूलभूत जरूरतें आज भी अधूरी हैं। यदि स्थायी भवन मिल जाए तो यहां की शिक्षा व्यवस्था को नई दिशा मिल सकती है।
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