बांसवाड़ा-डूंगरपुर से भारत आदिवासी पार्टी के सांसद राजकुमार रोत ने गुरुवार को मानगढ़ धाम में आयोजित 'भील प्रदेश संदेश यात्रा' कार्यक्रम में कहा कि भील प्रदेश का नक्शा उन्होंने नहीं, बल्कि 1896 में आदिवासी वर्ग से डरे अंग्रेजों ने जारी किया था। ब्रिटिश सरकार को लगा कि यह आदिवासी क्षेत्र है, यहां दखलंदाजी करना खतरे से खाली नहीं है, भीलों से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता, इसलिए उन्होंने भील प्रदेश देश के नाम से नक्शा जारी किया। ब्रिटिश हुकूमत से आज तक विकास से वंचित आदिवासी बहुल क्षेत्र के लोग अब एकजुट होकर भील प्रदेश की बात कर रहे हैं।
अलग राज्य की मांग को दबा दिया गया है - सांसद राजकुमार रोत
सांसद राजकुमार रोत ने कहा कि आज स्कूलों में 10 हजार साल पुराना इतिहास पढ़ाया जा रहा है। आजादी के बाद से उठ रही अलग राज्य की मांग को दबा दिया गया है। 1913 में गोविंद गुरु महाराज के नेतृत्व में सैकड़ों आदिवासियों ने मानगढ़ की इसी पहाड़ी पर इसी मुद्दे पर अपने प्राणों की आहुति दी थी। भाजपा नेता दिलीप सिंह भूरिया ने यह माँग उठाई है, इस क्षेत्र का हर छोटा बच्चा भील प्रदेश की माँग कर रहा है।
राजस्थान का गौरव आदिवासी समुदाय के बिना अधूरा है
1913 में बांसवाड़ा में, 1925 में महाराष्ट्र के सतपुड़ा-नंदुरबा में, 1970 में इसी स्थान पर रामदास महाराज ने यह माँग उठाई थी। राजस्थान का गौरव आदिवासी समुदाय के बिना, उनके बलिदान के बिना अधूरा है। अगर वहाँ के भीलों ने 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के साथ कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध न किया होता, तो परिणाम कुछ और होते।
सांसद राजकुमार रोत का स्पष्टीकरण, देश का मतलब क्षेत्र होता है, देश नहीं
सांसद राजकुमार रोत ने कहा - भाजपा के एक बड़े नेता ने मुझ पर भील प्रदेश का नक्शा जारी करके गौरवशाली राजस्थान के इतिहास को नष्ट करने का प्रयास करने का आरोप लगाया। कुछ लोगों ने कहा, राजकुमार रोत पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिए। इस बात के लिए कि मैंने देश का नक्शा जारी किया। आप अधिकारी बनकर नेता बन गए हैं। देश का मतलब क्षेत्र या प्रदेश होता है, देश नहीं। ब्रिटिश शासन में, रियासत काल में भी, इस क्षेत्र को देहात कहा जाता था। उन्होंने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी और सिंचाई जैसी बुनियादी सुविधाओं का भारी अभाव है। इन समस्याओं का एकमात्र समाधान भील प्रदेश का गठन है। पाँचवीं और छठी अनुसूची का प्रभावी क्रियान्वयन होना चाहिए।
आदिवासी ऐसा ही स्वरूप चाहते हैं
भारत आदिवासी पार्टी के नेताओं के नेतृत्व में वर्तमान में चार राज्यों के 44 जिलों को मिलाकर आदिवासियों के लिए एक अलग राज्य की माँग ज़ोर-शोर से उठाई जा रही है।
1- राजस्थान के ये जिले: बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बाड़मेर, जालौर, सिरोही, उदयपुर, झालावाड़, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, कोटा, बारां, पाली।
2- गुजरात और मध्य प्रदेश के 13-13 जिले और महाराष्ट्र के 6 जिले।
3- बीएपी सांसद राजकुमार रोत ने हाल ही में 49 जिलों को शामिल करते हुए एक मानचित्र जारी किया।
यह दूसरा स्वतंत्रता आंदोलन है - आदिवासी नेता भंवरलाल
मुख्य वक्ता और आदिवासी नेता भंवरलाल ने कहा कि यह दूसरा स्वतंत्रता आंदोलन है क्योंकि 1947 के बाद प्रशासन ने आदिवासियों को गुलामी में डाल दिया था। उन्होंने युवाओं से नशा छोड़ने और अनुशासन अपनाने का आह्वान किया। बैठक में जल, जंगल और ज़मीन के अधिकारों का मुद्दा भी उठाया गया।
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